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ईरान में आर्थिक संकट: रियाल की गिरावट से भड़के विरोध प्रदर्शन

ईरान की अर्थव्यवस्था में गंभीर संकट के चलते रियाल की गिरावट ने देशभर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों को जन्म दिया है। केंद्रीय बैंक के प्रमुख के इस्तीफे के बाद, तेहरान और अन्य प्रमुख शहरों में लोग सड़कों पर उतर आए हैं। महंगाई और गिरती क्रयशक्ति ने आम जनता की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। यह आंदोलन 2022 के बाद का सबसे बड़ा माना जा रहा है, जब महसा जिना अमिनी की मौत के बाद देशभर में विरोध हुए थे। जानें इस संकट के पीछे के कारण और वर्तमान स्थिति के बारे में।
 

नई दिल्ली: ईरान में आर्थिक संकट का उभार


ईरान की बिगड़ती आर्थिक स्थिति ने लोगों को सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर कर दिया है। हालात इतने गंभीर हो गए हैं कि केंद्रीय बैंक के प्रमुख मोहम्मद रजा फरज़िन को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। ईरानी मुद्रा रियाल, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है, जिसके चलते देशभर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं।


महंगाई और गिरती क्रयशक्ति का असर

बढ़ती महंगाई और घटती क्रयशक्ति ने आम जनता की मुश्किलें बढ़ा दी हैं, जिसका प्रभाव राजधानी तेहरान और अन्य बड़े शहरों में स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है। यह विरोध प्रदर्शन पिछले तीन वर्षों में सबसे बड़े आंदोलनों में से एक माना जा रहा है, जिसने सरकार की आर्थिक नीतियों पर गंभीर सवाल उठाए हैं।


तेहरान में भड़का आक्रोश

सरकारी टेलीविजन के अनुसार, केंद्रीय बैंक प्रमुख के इस्तीफे के बाद प्रदर्शनकारी तेहरान के विभिन्न इलाकों और अन्य प्रमुख शहरों में सड़कों पर उतर आए। समाचार एजेंसी के अनुसार, व्यापारियों और दुकानदारों ने तेहरान के सादी स्ट्रीट और ग्रैंड बाजार के पास रैलियां निकालीं।


ग्रैंड बाजार को ईरान में राजनीतिक बदलाव का एक महत्वपूर्ण प्रतीक माना जाता है, क्योंकि 1979 की इस्लामी क्रांति में यहां के व्यापारियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी।


अन्य शहरों में भी विरोध

आईआरएनए समाचार एजेंसी ने भी विरोध प्रदर्शनों की पुष्टि की है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, इस्फ़हान, शिराज और मशहद जैसे शहरों में भी इसी तरह की रैलियां देखने को मिलीं। वहीं, तेहरान के कुछ क्षेत्रों में पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस का इस्तेमाल किया।


2022 के बाद का सबसे बड़ा आंदोलन

सोमवार को हुए इस प्रदर्शन को 2022 के बाद का सबसे बड़ा आंदोलन माना जा रहा है। उस समय 22 वर्षीय महसा जिना अमिनी की पुलिस हिरासत में मौत के बाद देशभर में लंबे समय तक विरोध प्रदर्शन हुए थे। अमिनी को हिजाब नियमों के उल्लंघन के आरोप में नैतिकता पुलिस ने हिरासत में लिया था, जिसके बाद हालात बेकाबू हो गए थे।


व्यापारियों का विरोध

प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि कई व्यापारियों ने विरोध स्वरूप अपनी दुकानें बंद कर दीं और दूसरों से भी ऐसा करने की अपील की। अर्धसरकारी समाचार एजेंसी के अनुसार, कुछ दुकानें खुली रहीं, लेकिन बाजारों में कारोबार बेहद सुस्त रहा। इससे एक दिन पहले विरोध प्रदर्शन तेहरान के केंद्र में स्थित दो मोबाइल बाजारों तक सीमित थे, जहां सरकार विरोधी नारे लगाए गए थे।


रियाल की ऐतिहासिक गिरावट

इस अशांति की जड़ ईरानी मुद्रा रियाल की भारी गिरावट है। रविवार को रियाल 1.42 मिलियन प्रति डॉलर के रिकॉर्ड निचले स्तर तक पहुंच गया था। हालांकि, सोमवार को इसमें मामूली सुधार हुआ और यह लगभग 1.38 मिलियन प्रति डॉलर पर आ गया।


जब मोहम्मद रजा फरज़िन ने 2022 में केंद्रीय बैंक प्रमुख का पद संभाला था, उस समय रियाल की कीमत करीब 4,30,000 प्रति डॉलर थी।


महंगाई का बढ़ता दबाव

तेजी से गिरती मुद्रा के कारण महंगाई का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है। खाद्य और रोजमर्रा की जरूरतों की कीमतें आसमान छू रही हैं, जिससे परिवारों का बजट बुरी तरह प्रभावित हुआ है।


ईरान के सरकारी सांख्यिकी केंद्र के अनुसार, दिसंबर में महंगाई दर 42.2 प्रतिशत रही, जो पिछले साल और नवंबर दोनों से अधिक है। खाद्य पदार्थों की कीमतों में सालाना आधार पर 72 प्रतिशत, जबकि स्वास्थ्य और चिकित्सा से जुड़ी वस्तुओं में 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। कई आलोचक इन आंकड़ों को अति मुद्रास्फीति की ओर इशारा मान रहे हैं।


आर्थिक मुश्किलों का कारण

ईरान की आर्थिक समस्याएं अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों से गहराई से जुड़ी हुई हैं। 2015 के परमाणु समझौते के दौरान, जब ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर सीमाएं लगाने के बदले प्रतिबंधों में ढील दी गई थी, तब रियाल की कीमत डॉलर के मुकाबले करीब 32,000 थी।


हालांकि, 2018 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा अमेरिका को समझौते से बाहर निकालने के बाद यह व्यवस्था टूट गई और ईरान पर आर्थिक दबाव दोबारा बढ़ गया।


युद्ध और नए प्रतिबंधों का प्रभाव

जून में ईरान और इज़राइल के बीच हुए 12 दिवसीय युद्ध के बाद अनिश्चितता और गहरा गई है। एक बड़े क्षेत्रीय संघर्ष की आशंका, जिसमें अमेरिका के शामिल होने की संभावना भी जताई जा रही है, ने बाजारों पर अतिरिक्त दबाव डाल दिया है।


सितंबर में संयुक्त राष्ट्र ने तथाकथित स्नैपबैक तंत्र के तहत ईरान पर परमाणु संबंधी प्रतिबंध फिर से लागू कर दिए। इसके तहत विदेशों में ईरान की संपत्तियां फ्रीज़ कर दी गईं, हथियारों के लेन-देन पर रोक लगी और बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम से जुड़े दंड लगाए गए।