कॉप-30: जलवायु परिवर्तन पर चर्चा का निरर्थक प्रयास
कॉप-30 की विफलता
कॉप-30 को इतिहास में सबसे निरर्थक टॉक शो के रूप में याद किया जाएगा, जिसमें कई दिन इस बात पर चर्चा की गई कि चर्चा किस विषय पर करनी है। सरकारों ने किसी भी प्रकार की वचनबद्धता से बचने की कोशिश की।
संयुक्त राष्ट्र का जलवायु परिवर्तन पर सम्मेलन अब ऐसी स्थिति में पहुंच गया है, जहां जागरूक जनसंख्या में इससे नफरत बढ़ने लगी है। विभिन्न देशों की सरकारें जिस लक्ष्य के प्रति उदासीनता दिखा रही हैं, उस पर उनकी बातें सुनना एक बड़ी विडंबना बन गई है। ब्राजील के बेलेम में आयोजित कॉप-30 के दौरान एक एनजीओ कार्यकर्ता ने कहा कि यह सम्मेलन केवल चर्चा के लिए था, असली मुद्दों से बचने का प्रयास किया गया।
जीवाश्म ऊर्जा का बढ़ता उपयोग
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले 25 वर्षों में कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस का उपयोग बढ़ता रहेगा। इसके परिणामस्वरूप, भले ही अक्षय ऊर्जा का उपयोग बढ़े, ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी तेजी से बढ़ता रहेगा। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 2024 में कोयले का उपयोग रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच जाएगा।
इस बीच, अमेरिका, जो प्रति व्यक्ति सबसे अधिक उत्सर्जन करता है, जलवायु परिवर्तन की वास्तविकता को नकार चुका है। पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने 'ड्रिल बेबी ड्रिल' के नारे के साथ जीवाश्म ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा दिया।
विकासशील देशों की स्थिति
यूरोप, जो पहले जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील था, अब अपनी दिशा बदल चुका है। धनी देशों द्वारा विकासशील देशों को वित्तीय सहायता देने के वादे से मुकरने के कारण, जलवायु मुद्दों पर प्रगति की संभावना और भी कम हो गई है।
इस बीच, जंगलों में आग लगने की घटनाएं, जंगलों के नुकसान से होने वाली कार्बन डाइऑक्साइड की कमी, और समुद्री जल के तापमान में वृद्धि जैसे पहलू जलवायु परिवर्तन की समस्या को और गंभीर बना रहे हैं। इनका घातक परिणाम आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है।