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क्या ट्रंप की मध्यस्थता से पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच शांति संभव है?

डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच बढ़ते सीमा विवाद को सुलझाने के लिए मध्यस्थता की पेशकश की है। उन्होंने खुद को 'युद्धों को सुलझाने वाला विशेषज्ञ' बताया है और कहा है कि यह उनके लिए गर्व की बात होगी यदि वे इस संघर्ष को समाप्त कर सकें। हालात तनावपूर्ण हैं, और दोनों देशों के बीच हालिया झड़पों ने स्थिति को और बिगाड़ दिया है। ट्रंप का यह दावा कि वह शांति स्थापित करने में सक्षम हैं, सवाल उठाता है कि क्या उनकी पेशकश को गंभीरता से लिया जाएगा। क्या यह मध्यस्थता संभव है? जानें इस लेख में।
 

ट्रंप की शांति स्थापना की पेशकश


अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर खुद को वैश्विक संकटों के समाधानकर्ता के रूप में प्रस्तुत करते हुए पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच बढ़ते सीमा विवाद को सुलझाने की पेशकश की है. हालिया घटनाओं के मद्देनज़र ट्रंप ने कहा कि वह इन दोनों देशों के बीच मध्यस्थता कर शांति स्थापित करना चाहते हैं. ट्रंप ने खुद को "युद्धों को सुलझाने वाला विशेषज्ञ" बताया और कहा कि यह उनके लिए गर्व की बात होगी अगर वे इस संघर्ष को समाप्त कर पाएं.


सीमा पर तनाव और संघर्ष

सीमा पर हालात तनावपूर्ण, दोनों पक्षों को नुकसान
पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच सीमा पर हालात बेहद तनावपूर्ण बने हुए हैं. हाल ही में दोनों देशों की सेनाओं के बीच भीषण गोलीबारी और झड़पें हुईं, जिनमें भारी जान-माल की क्षति हुई है. तालिबान ने दावा किया कि उन्होंने पाकिस्तान के 58 सैनिक मार गिराए हैं, जबकि पाकिस्तान का कहना है कि उन्होंने कई अफगान सुरक्षा चौकियों पर नियंत्रण हासिल कर लिया है. यह झड़पें लगातार दो दिन तक चलीं, जिससे सीमाई इलाकों में दहशत और अस्थिरता फैल गई.


ट्रंप का शांति स्थापित करने का दावा

मैं शांति स्थापित करने में विशेषज्ञ हूं... ट्रंप का दावा
ट्रंप ने इस संघर्ष पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "यह मेरा 8वां युद्ध होगा जिसे मैं सुलझाने जा रहा हूं." उन्होंने गाजा संघर्ष और भारत-पाकिस्तान के बीच के तनाव सहित कई अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को शांतिपूर्वक निपटाने का दावा किया. ट्रंप ने कहा कि उन्होंने व्यापारिक दबाव, टैरिफ की धमकी और कूटनीतिक रणनीति से कई युद्धों को रोका है. उनके अनुसार, शांति स्थापित करना उनके लिए केवल एक राजनीतिक कार्य नहीं बल्कि "सम्मान" की बात है.


भारत-पाकिस्तान में मध्यस्थता का पूर्व अनुभव

पहले भी कर चुके भारत-PAK मध्यस्थता का दावा
डोनाल्ड ट्रंप इससे पहले भी भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता की पेशकश कर चुके हैं, खासकर कश्मीर मुद्दे को लेकर. हालांकि भारत ने हर बार उनके इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया. भारत का यह स्पष्ट रुख रहा है कि कश्मीर एक द्विपक्षीय मुद्दा है और इसमें किसी तीसरे पक्ष की भूमिका नहीं हो सकती. इसके बावजूद ट्रंप बार-बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खुद को एक "शांति निर्माता" के रूप में प्रस्तुत करते रहे हैं.


ट्रंप की वैश्विक राजनीति में सक्रियता

ट्रंप की वैश्विक राजनीति में सक्रियता का संकेत
इस बयान के माध्यम से ट्रंप ने यह साफ कर दिया है कि वह अब भी अंतरराष्ट्रीय राजनीति में प्रभावी भूमिका निभाने के इच्छुक हैं. भले ही वह अब अमेरिकी राष्ट्रपति नहीं हैं, लेकिन विश्व राजनीति के बड़े मसलों पर टिप्पणी और मध्यस्थता की इच्छा जताकर वह यह दर्शाते हैं कि उनकी वैश्विक छवि अब भी बनी हुई है. विशेष रूप से ऐसे समय में जब अमेरिका की विदेशी नीति को लेकर दुनिया भर में सवाल उठते हैं, ट्रंप अपनी सक्रिय भूमिका से फिर सुर्खियों में हैं.


मध्यस्थता की पेशकश की व्यावहारिकता

क्या मध्यस्थता की यह पेशकश स्वीकार होगी?
हालांकि ट्रंप की यह पेशकश कितनी व्यावहारिक है और इसे पाकिस्तान या अफगानिस्तान कितनी गंभीरता से लेंगे, यह अभी स्पष्ट नहीं है. दोनों देशों के बीच हालिया तनाव काफी गहरा है और तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद से अफगानिस्तान की विदेश नीति में काफी बदलाव आए हैं. ऐसे में ट्रंप की मध्यस्थता को स्वीकार करना या न करना, दोनों देशों की आंतरिक राजनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर निर्भर करेगा.