क्या भारत-इजरायल का संयुक्त ऑपरेशन बदल सकता था दक्षिण एशिया का सुरक्षा परिदृश्य?
पूर्व सीआईए अधिकारी का बयान
नई दिल्ली: रिचर्ड बार्लो, जो पूर्व सीआईए अधिकारी हैं, ने कहा है कि यदि भारत और इजरायल ने मिलकर पाकिस्तान की परमाणु महत्वाकांक्षा को समय रहते रोक दिया होता, तो आज दक्षिण एशिया का सुरक्षा परिदृश्य पूरी तरह से अलग हो सकता था।
गुप्त योजना का खुलासा
बार्लो ने एक साक्षात्कार में बताया कि 1980 के दशक की शुरुआत में भारत और इजरायल ने पाकिस्तान के कहुटा परमाणु संयंत्र पर एक संयुक्त हवाई हमले की योजना बनाई थी। कहुटा वह स्थान है जहां पाकिस्तान ने यूरेनियम संवर्धन तकनीक विकसित की और अंततः परमाणु हथियार बनाए। बार्लो का कहना है कि यदि यह हमला सफल होता, तो पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम प्रारंभिक चरण में ही समाप्त हो सकता था।
इंदिरा गांधी का निर्णय
बार्लो के अनुसार, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था। उनके अनुसार, यह कदम जोखिम भरा था और इसके भू-राजनीतिक परिणाम गंभीर हो सकते थे। बार्लो इसे एक चूक के रूप में देखते हैं, क्योंकि इससे क्षेत्र की कई समस्याएं समाप्त हो सकती थीं।
भारत और इजरायल की चिंताएं
रिपोर्टों के अनुसार, भारत और इजरायल दोनों को यह चिंता थी कि पाकिस्तान अपनी परमाणु तकनीक न केवल अपने लिए, बल्कि ईरान जैसे देशों को भी दे सकता है। इजरायल को ईरान से सबसे बड़ा खतरा महसूस होता था, इसलिए वह कहुटा पर हमले के लिए उत्सुक था। भारत भी पाकिस्तान की परमाणु क्षमताओं को रोकना चाहता था।
अमेरिका की भूमिका
बार्लो ने बताया कि उस समय अमेरिका अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ गुप्त युद्ध चला रहा था और पाकिस्तान उसका मुख्य सहयोगी था। अमेरिका पाकिस्तान की जमीन का उपयोग कर अफगान मुजाहिद्दीन को हथियार और फंडिंग दे रहा था। यदि भारत और इजरायल कहुटा पर हमला करते, तो पाकिस्तान नाराज होकर अमेरिका का सहयोग बंद कर देता। इसलिए अमेरिकी प्रशासन ऐसे किसी भी ऑपरेशन के खिलाफ था।
पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम
कहुटा संयंत्र का निर्माण ए क्यू खान की देखरेख में हुआ था, जिन्होंने चोरी की तकनीक और अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क का उपयोग कर पाकिस्तान को परमाणु शक्ति बनने में मदद की। 1998 में पाकिस्तान ने अपने पहले परमाणु परीक्षण किए, जिससे दक्षिण एशिया एक नए परमाणु संकट में प्रवेश कर गया।
बार्लो की निराशा
पूर्व सीआईए अधिकारी का मानना है कि यदि भारत और इजरायल का संयुक्त ऑपरेशन सफल होता, तो पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम वहीं समाप्त हो सकता था और क्षेत्र में कई संघर्षों की संभावना नहीं होती। हालांकि, इतिहास ने एक अलग दिशा में मोड़ लिया।