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गाजा शांति सम्मेलन: क्या भारत की भागीदारी से बनेगी स्थायी शांति?

मिस्र के शर्म अल शेख में आयोजित गाजा शांति सम्मेलन में भारत की भागीदारी पर चर्चा हो रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया गया है, जबकि विदेश राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे। सम्मेलन में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप समेत कई वैश्विक नेता शामिल होंगे। इस सम्मेलन का उद्देश्य गाजा क्षेत्र में स्थायी शांति स्थापित करना है, लेकिन हमास ने प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। क्या यह सम्मेलन स्थायी शांति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा? जानें इस लेख में।
 

मिस्र में गाजा शांति सम्मेलन


गाजा शांति सम्मेलन: गाजा पट्टी में चल रहे लंबे संघर्ष को समाप्त करने के लिए मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सम्मेलन में आमंत्रित किया है। यह सम्मेलन मिस्र के प्रसिद्ध शहर शर्म अल शेख में हो रहा है, जिसे अंतर्राष्ट्रीय बैठकों और शांति वार्ताओं का एक प्रमुख स्थल माना जाता है।


इस महत्वपूर्ण आयोजन में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सहित लगभग 20 वैश्विक नेता शामिल होंगे। इसे गाजा क्षेत्र में स्थायी शांति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।


भारत की भूमिका

हालांकि, प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति पर स्थिति स्पष्ट नहीं है, लेकिन विदेश राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह ने इस कार्यक्रम में भारत का प्रतिनिधित्व करने की पुष्टि की है।


भारत की नीति हमेशा शांति, संतुलन और संयम पर आधारित रही है। भारत के इजरायल और फिलिस्तीन दोनों के साथ घनिष्ठ संबंध हैं, इसलिए इस पहल में भारत की भागीदारी न केवल कूटनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह दक्षिण एशिया में भारत की स्थायी शांति के पक्षधर राष्ट्र की छवि को भी मजबूत करती है।


गाजा शांति समझौते का महत्व

गाजा शांति समझौता: इजरायल और हमास के बीच वर्षों से चल रहे संघर्ष में हजारों जानें जा चुकी हैं और बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान हुआ है। अब एक औपचारिक शांति समझौता प्रस्तावित किया गया है, जिसमें दोनों पक्षों द्वारा युद्ध विराम और संवाद की ओर बढ़ने की बात कही गई है।


ट्रंप की शांति योजना

ट्रंप की शांति योजना के मुख्य बिंदु:



  • तत्काल युद्धविराम

  • गाजा से इजरायली सेना की वापसी

  • बंदियों और बंधकों की अदला-बदली

  • दोनों पक्षों की स्थायी सहमति से शांति बनाए रखना


हमास की प्रतिक्रिया

हमास की कड़ी आपत्ति: हालांकि, हमास ने इस प्रस्ताव को पूरी तरह से खारिज कर दिया है। संगठन ने इसे "एकतरफा और बेतुका" बताया है। हमास ने स्पष्ट किया है कि वे न तो अपने हथियार डालेंगे और न ही गाजा क्षेत्र छोड़ेंगे। उनका मानना है कि यह समझौता केवल इजरायल के हितों को बढ़ावा देता है।


इजरायल की शर्तें

इजरायल की शर्तें: इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भी इस योजना पर संदेह व्यक्त किया है। उनकी मांग है कि हमास को पहले पूरी तरह से निष्क्रिय किया जाए, तभी किसी समझौते पर सहमति दी जा सकती है।


शांति की राह में चुनौतियाँ

शांति की राह पर मुश्किलें: डोनाल्ड ट्रंप को विश्वास है कि उनका प्रस्ताव मध्य पूर्व में स्थायी शांति की दिशा में पहला ठोस कदम हो सकता है। लेकिन राजनीतिक मतभेद, सुरक्षा चिंताएं और दोनों पक्षों की कठोर शर्तें इस प्रक्रिया को जटिल बना रही हैं।