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चीन की परमाणु क्षमता में तेजी से विस्तार: वैश्विक सुरक्षा पर खतरा

हालिया रिपोर्ट में चीन की परमाणु क्षमता के तेजी से विस्तार की जानकारी सामने आई है, जिसमें सौ से अधिक अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलों की तैनाती का उल्लेख है। यह स्थिति वैश्विक सामरिक संतुलन को प्रभावित कर सकती है, खासकर अमेरिका और रूस के बीच न्यू स्टार्ट संधि के समाप्त होने के समय। रिपोर्ट में चीन की रणनीतिक सोच और उसके दीर्घकालिक इरादों पर भी प्रकाश डाला गया है। भारत जैसे देशों के लिए यह एक चेतावनी है कि एशिया में शक्ति संतुलन तेजी से बदल रहा है।
 

चीन की बढ़ती परमाणु ताकत पर चिंता

अमेरिकी रक्षा विभाग द्वारा जारी एक मसौदा रिपोर्ट ने वैश्विक सामरिक संतुलन को लेकर गंभीर चिंताएं उत्पन्न की हैं। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन ने साइलो क्षेत्रों में सौ से अधिक अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलें तैनात कर दी हैं या ऐसा करने की प्रक्रिया में है। यह तैनाती मंगोलिया की सीमा के निकट की गई है। रिपोर्ट से स्पष्ट होता है कि बीजिंग न केवल अपने परमाणु शस्त्रागार का तेजी से विस्तार कर रहा है, बल्कि हथियार नियंत्रण पर किसी भी व्यापक बातचीत में रुचि नहीं दिखा रहा है।


चीन का हथियार भंडार और उसकी रणनीति

शिकागो स्थित बुलेटिन ऑफ द एटॉमिक साइंटिस्ट्स के अनुसार, चीन इस समय दुनिया की अन्य परमाणु शक्तियों की तुलना में अपने हथियारों के भंडार का सबसे तेज़ी से विस्तार कर रहा है। हालांकि, बीजिंग ने इन रिपोर्टों को चीन को बदनाम करने की कोशिश करार दिया है। वाशिंगटन में स्थित चीन के दूतावास का कहना है कि उनका परमाणु सिद्धांत पूरी तरह से रक्षात्मक है और उनकी परमाणु क्षमता राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए न्यूनतम स्तर पर रखी गई है।


साइलो क्षेत्रों की विशेषताएँ

रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि चीन ने ठोस ईंधन वाली डीएफ 31 मिसाइलों को साइलो में तैनात किया है। साइलो वे विशेष सैन्य क्षेत्र होते हैं जहां लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों को सुरक्षित रखने के लिए गहरे और मजबूत ढांचे बनाए जाते हैं। ये संरचनाएँ हवाई हमलों या परमाणु विस्फोटों से सुरक्षित रहती हैं।


सामरिक संतुलन में बदलाव

साइलो क्षेत्रों का विस्तार यह दर्शाता है कि कोई देश केवल रक्षा नहीं, बल्कि दीर्घकालिक सामरिक दबदबा भी चाहता है। पेंटागन की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में चीन के परमाणु वारहेड की संख्या लगभग 600 थी, जो 2030 तक एक हजार से अधिक होने की संभावना है। यह स्थिति अमेरिका और रूस के बीच न्यू स्टार्ट संधि के समाप्त होने के समय आई है, जिससे त्रिपक्षीय परमाणु हथियार दौड़ तेज हो सकती है।


चीन की रणनीतिक सोच

चीन की यह परमाणु छलांग उसके इरादों की स्पष्ट घोषणा है। बीजिंग अब खुद को एक क्षेत्रीय शक्ति से वैश्विक सामरिक खिलाड़ी के रूप में स्थापित करना चाहता है। हथियार नियंत्रण वार्ता से दूरी चीन की रणनीतिक सोच को और स्पष्ट करती है।


भारत के लिए चेतावनी

भारत जैसे देशों के लिए यह स्थिति एक चेतावनी है। एशिया में शक्ति संतुलन तेजी से बदल रहा है और चीन का यह विस्तार केवल दूर देशों का मसला नहीं है। ऐसे में सतर्कता और मजबूत प्रतिरोध ही एकमात्र रास्ता है।