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ट्रंप का बयान: पाकिस्तान और चीन के गुप्त परमाणु परीक्षणों पर चिंता

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में पाकिस्तान और चीन के गुप्त परमाणु परीक्षणों पर चिंता जताई है। उनका बयान इस मुद्दे को फिर से वैश्विक चर्चा में लाता है, खासकर जब से 1998 के बाद से कोई भी देश सार्वजनिक रूप से परमाणु परीक्षण नहीं कर रहा है। जानें कि पाकिस्तान ने अपने पहले परीक्षण कब किए थे और इसके बाद क्षेत्र में क्या प्रभाव पड़े। क्या ये परीक्षण वैश्विक सुरक्षा को खतरे में डाल सकते हैं? इस लेख में जानें सभी महत्वपूर्ण पहलू।
 

ट्रंप का विवादास्पद बयान


नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अक्सर ऐसे बयान देते हैं जो वैश्विक बहस को जन्म देते हैं। हाल ही में, उन्होंने परमाणु परीक्षणों के संदर्भ में कहा कि पाकिस्तान और चीन उन देशों में शामिल हैं जो गुप्त रूप से परमाणु हथियारों का परीक्षण कर रहे हैं। इसके साथ ही, उन्होंने रूस और उत्तर कोरिया को भी इसी श्रेणी में रखा।


परमाणु परीक्षणों का महत्व

यह बयान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि 1998 के बाद से किसी भी देश ने सार्वजनिक रूप से भूमिगत परमाणु परीक्षण नहीं किया है। इससे यह सवाल उठता है कि यदि पाकिस्तान वास्तव में अपने परमाणु हथियारों का परीक्षण कर रहा है, तो वह ऐसा कहां कर रहा होगा?


न्यूक्लियर टेस्ट साइट का चयन

कैसे चुनी जाती है न्यूक्लियर टेस्ट साइट? 


किसी भी देश के लिए परमाणु परीक्षण स्थल का चयन एक संवेदनशील और तकनीकी प्रक्रिया है। टेस्ट साइट ऐसी जगह चुनी जाती है जहां मानव बस्ती दूर हो, जमीन मजबूत हो और भूकंपीय प्रभाव कम से कम पड़े। आमतौर पर, जमीन में गहराई तक छेद कर उसमें परमाणु उपकरण रखा जाता है। विस्फोट के बाद रेडियोएक्टिव तत्व बाहर न निकलें, इसके लिए उस छेद को बजरी, मिट्टी और अन्य सामग्रियों से सील कर दिया जाता है।


इसके साथ ही चारों ओर रेडिएशन मॉनिटरिंग सेंसर लगाए जाते हैं ताकि किसी भी रिसाव की जानकारी तुरंत मिल सके। वैज्ञानिक और सैन्य विशेषज्ञ लगातार तापमान, दबाव और भूकंपीय कंपन पर नजर रखते हैं। ब्लास्ट के बाद परीक्षण स्थल की सुरक्षा बढ़ा दी जाती है और नमूने लेकर उनके असर का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है।


पाकिस्तान के परमाणु परीक्षणों का इतिहास

पाकिस्तान के न्यूक्लियर टेस्ट की कहानी


पाकिस्तान ने अपने पहले परमाणु परीक्षण 28 मई 1998 को किए थे, जिन्हें "चगाई-I" नाम दिया गया था। इस दिन बलूचिस्तान के चगाई जिले की रास कोह पहाड़ियों में पांच परमाणु बमों का परीक्षण किया गया था। इसके दो दिन बाद, 30 मई को, "चगाई-II" नामक एक और परीक्षण खारन रेगिस्तान में हुआ था। इन परीक्षणों ने पाकिस्तान को आधिकारिक तौर पर दुनिया का सातवां परमाणु शक्ति संपन्न देश बना दिया।


बलूचिस्तान के स्थानीय लोगों का आरोप है कि सरकार ने बिना चेतावनी के उनके इलाके को न्यूक्लियर टेस्ट साइट बना दिया। उनका कहना है कि इन विस्फोटों के बाद क्षेत्र में रेडिएशन और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बढ़ीं। कई नागरिक संगठनों ने इन परीक्षणों को मानवाधिकार उल्लंघन करार दिया है।


भूकंपों की बढ़ती गतिविधि

बलूचिस्तान में भूकंपों की बढ़ती गतिविधि


भूगर्भीय रिपोर्टों के अनुसार, चगाई और खारन इलाका भूकंपीय रूप से सक्रिय है। Earthquake List के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले दस वर्षों में बलूचिस्तान में हर साल औसतन 29 भूकंप दर्ज किए गए हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह संख्या सामान्य भूकंपीय गतिविधियों के कारण हो सकती है, लेकिन स्थानीय समुदाय इन भूकंपों को 1998 के परमाणु परीक्षणों का परिणाम मानते हैं।


ट्रंप के बयान ने एक बार फिर इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में ला दिया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि पाकिस्तान वास्तव में गुप्त रूप से परमाणु परीक्षण कर रहा है, तो इसका असर न केवल क्षेत्रीय स्थिरता पर पड़ेगा बल्कि पूरी दुनिया की सुरक्षा व्यवस्था पर भी गहरा प्रभाव डालेगा।