ढाका में भड़के विरोध: पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को फांसी की मांग
बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन
बांग्लादेश की राजधानी ढाका में शनिवार को एक बार फिर से बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। ढाका के अलावा अन्य शहरों में भी लोग सड़कों पर उतर आए, जहां भारी भीड़ ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की वापसी और उन्हें मौत की सजा देने की मांग की।
विरोध की शुरुआत
यह विरोध उस फैसले के बाद शुरू हुआ, जिसमें अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT) ने 2024 के छात्र आंदोलन के दौरान हुई कथित हत्याओं के लिए हसीना को फांसी की सजा सुनाई। इस मामले में पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमां खान कमाल को भी मानवता के खिलाफ अपराधों का दोषी ठहराया गया। अदालत में फैसला सुनाए जाने के समय हसीना मौजूद नहीं थीं।
विरोध प्रदर्शन का विस्तार
निर्णय के अगले दिन स्थिति और तनावपूर्ण हो गई। मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और जमात-ए-इस्लामी ने मिलकर एक विशाल मार्च निकाला, जो ढाका विश्वविद्यालय से शुरू होकर शाहबाग चौराहे तक पहुंचा। प्रदर्शनकारियों ने हसीना को फांसी देने, भारत से प्रत्यर्पित करने और न्याय की मांग करते हुए नारे लगाए। इस रैली में छात्र संगठनों, आंदोलन के पीड़ित परिवारों और कई राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया।
चुनाव का आश्वासन
इस बीच, अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस ने 2026 में चुनाव कराने का आश्वासन दिया है, लेकिन अवामी लीग पर लगे प्रतिबंध ने राजनीतिक टकराव को बढ़ा दिया है। हसीना समर्थकों द्वारा 13 से 17 नवंबर तक बुलाए गए लॉकडाउन के दौरान राजधानी में हिंसा और आगजनी की घटनाएं भी हुईं। रविवार की रैली में विपक्षी दलों ने चुनाव सुधार और अन्य समुदायों के खिलाफ विवादित नारे भी लगाए, जिसके चलते पुलिस को लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल करना पड़ा।
मानवाधिकारों की स्थिति
इस बीच, एमनेस्टी इंटरनेशनल और संयुक्त राष्ट्र ने इस मुकदमे की निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं। हसीना ने इस कार्रवाई को "राजनीतिक प्रतिशोध" से प्रेरित बताया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थिति चुनाव से पहले देश में और अस्थिरता पैदा कर सकती है।
हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमले
देश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमलों को लेकर चिंता बढ़ती जा रही है। मानवाधिकार संगठनों के अनुसार, 2024 में हिंदू समुदाय के खिलाफ 2,200 से अधिक मामले सामने आए, जिनमें हमले, मंदिरों में तोड़फोड़, लड़कियों का अपहरण और जबरन धर्म परिवर्तन जैसी घटनाएं शामिल हैं। एनजीओ लगातार सरकार से सुरक्षा बढ़ाने की मांग कर रहे हैं।