तसलीमा नसरीन का खालिदा जिया पर बयान: क्या खत्म होगा 31 साल का वनवास?
खालिदा जिया के निधन पर तसलीमा नसरीन की प्रतिक्रिया
नई दिल्ली: बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के निधन के बाद से देश और विदेश में प्रतिक्रियाओं का सिलसिला जारी है। इस बीच, बांग्लादेशी लेखिका और मानवाधिकार कार्यकर्ता तसलीमा नसरीन ने उनके शासनकाल के दौरान अपने अनुभव साझा किए हैं। तसलीमा की यह प्रतिक्रिया न केवल राजनीतिक शोक का प्रतीक है, बल्कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और व्यक्तिगत संघर्षों की कहानी भी बयां करती है।
तसलीमा का अभिव्यक्ति की आज़ादी पर सवाल
तसलीमा नसरीन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा कि खालिदा जिया ने लगभग 10 वर्षों तक प्रधानमंत्री के रूप में देश का नेतृत्व किया, लेकिन इस दौरान उनकी कई किताबों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। उन्होंने आशा व्यक्त की कि अब खालिदा जिया के निधन के बाद शायद उनकी पुस्तकों से पाबंदी हटे और उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बहाल हो सके।
जिहादियों का समर्थन और मुकदमे
"मेरे खिलाफ मुकदमे दर्ज हुए, जिहादियों का साथ दिया"
तसलीमा ने अपने पोस्ट में बताया कि 1994 में उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज किए गए और उस समय की सरकार ने जिहादी तत्वों का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि “एक महिला, सेकुलर, मानवतावादी और फ्री-थिंकर लेखिका के खिलाफ केस दर्ज किए गए और मेरे खिलाफ अरेस्ट वॉरंट तक जारी करवाया गया.”
इन घटनाओं के कारण उन्हें अपने देश से निर्वासित होना पड़ा और खालिदा जिया के शासनकाल में वे कभी भी बांग्लादेश वापस नहीं लौट सकीं।
31 साल का वनवास और अनसुलझे सवाल
31 साल का वनवास और अनसुलझे सवाल
तसलीमा ने भावुकता से सवाल उठाया कि क्या खालिदा जिया की मृत्यु के साथ उनका 31 साल का वनवास समाप्त होगा या यह अन्याय जारी रहेगा। उन्होंने लिखा कि यह सवाल केवल उनका नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों का भी है—क्या अभिव्यक्ति की आज़ादी पीढ़ी दर पीढ़ी कुचली जाती रहेगी या इसका अंत होगा।
प्रतिबंधित किताबों की सूची
किन-किन किताबों पर लगा था प्रतिबंध
तसलीमा ने उन पुस्तकों का उल्लेख किया जिन पर खालिदा जिया के कार्यकाल में प्रतिबंध लगाया गया। उन्होंने बताया कि उनकी प्रसिद्ध किताब ‘लज्जा’ पर 1993 में, ‘उत्तल हवा’ पर 2002 में, ‘का’ पर 2003 में और ‘वे काले दिन’ पर 2004 में पाबंदी लगाई गई थी।
क्या अब अभिव्यक्ति की आज़ादी बहाल होगी?
“क्या अब बहाल होगी अभिव्यक्ति की आज़ादी?”
तसलीमा ने लिखा कि खालिदा जिया ने अपने जीवनकाल में कभी भी उनकी अभिव्यक्ति की आज़ादी के समर्थन में कदम नहीं उठाया। उन्होंने उम्मीद जताई कि शायद अब उनके निधन के बाद यह स्थिति बदले।
यह ध्यान देने योग्य है कि तसलीमा नसरीन लंबे समय से भारत में रह रही हैं और उनका उपन्यास लज्जा भारत में फिल्म के रूप में भी प्रदर्शित किया जा चुका है, जिसे व्यापक पहचान मिली थी।