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तारिक रहमान की बांग्लादेश वापसी: क्या बदलेंगे राजनीतिक समीकरण?

बांग्लादेश में राजनीतिक उथल-पुथल के बीच, पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बेटे तारिक रहमान की वापसी एक महत्वपूर्ण घटना है। उनकी वापसी से बीएनपी की चुनावी संभावनाएं बढ़ सकती हैं, लेकिन मौजूदा राजनीतिक स्थिति जटिल है। जानें कैसे उनकी विदेश नीति और कट्टरपंथी ताकतों के साथ बीएनपी का सामना चुनावी परिदृश्य को प्रभावित कर सकता है। क्या तारिक रहमान बांग्लादेश में लोकतंत्र की बहाली कर पाएंगे? इस लेख में जानें।
 

बांग्लादेश में राजनीतिक उथल-पुथल


नई दिल्ली: बांग्लादेश इस समय गंभीर राजनीतिक और सामाजिक संकट का सामना कर रहा है। देश में बढ़ती हिंसा और कट्टरपंथी इस्लामी समूहों की गतिविधियों के बीच, फरवरी 2026 में प्रस्तावित आम चुनावों से पहले एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना घटित हुई है। पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बेटे और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के कार्यवाहक अध्यक्ष तारिक रहमान की देश वापसी को मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य का सबसे बड़ा मोड़ माना जा रहा है।


स्वागत समारोह की तैयारियां

तारिक रहमान गुरुवार को बांग्लादेश लौटने वाले हैं। उनकी वापसी के अवसर पर बीएनपी को एक भव्य स्वागत समारोह आयोजित करने की अनुमति मिल चुकी है। लंबे समय से विदेश में रहने वाले तारिक की वापसी ऐसे समय हो रही है जब बीएनपी को आगामी चुनावों में सबसे मजबूत दावेदार माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि हालात में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया, तो बीएनपी की जीत की संभावना काफी अधिक है।


अंतरिम सरकार पर उठते सवाल

बीएनपी ने मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार पर लगातार सवाल उठाए हैं। खासकर विदेश नीति के मुद्दे पर तारिक रहमान ने अपनी असहमति व्यक्त की है। उन्होंने मई में कहा था कि बिना निर्वाचित जनादेश वाली सरकार को दीर्घकालिक और रणनीतिक विदेश नीति के निर्णय लेने का अधिकार नहीं होना चाहिए। बीएनपी का मानना है कि अंतरिम सरकार कई मामलों में लापरवाह रही है।


‘बांग्लादेश फर्स्ट’ की नीति

तारिक रहमान ने अपनी विदेश नीति के दृष्टिकोण को स्पष्ट किया है। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश किसी भी बाहरी शक्ति के प्रभाव में नहीं रहेगा। ढाका में एक रैली के दौरान उनका नारा 'दिल्ली नहीं, पिंडी नहीं, बांग्लादेश पहले' काफी चर्चा में रहा। यह नीति शेख हसीना के भारत-केंद्रित संतुलन और यूनुस सरकार के पाकिस्तान की ओर झुकाव से अलग मानी जा रही है।


बीएनपी और कट्टरपंथी ताकतों का सामना

हालांकि बीएनपी पहले जमात-ए-इस्लामी के साथ गठबंधन में रह चुकी है, लेकिन वर्तमान स्थिति कहीं अधिक जटिल है। जमात-ए-इस्लामी को मुख्यधारा में लौटने की अनुमति दी गई है और वह धीरे-धीरे अपनी जमीनी ताकत बढ़ाने में जुटी है। जमात ने किसी भी पारंपरिक गठबंधन से दूरी बनाते हुए चुनावी प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं, जिससे राजनीतिक अस्थिरता और बढ़ने की आशंका है।


चुनाव में देरी से बढ़ी चुनौतियां

चुनाव में हो रही देरी बीएनपी के लिए नुकसानदेह साबित हो रही है, क्योंकि उसका चुनावी अभियान पहले ही गति पकड़ चुका है। वहीं, इस देरी से जमात-ए-इस्लामी और अन्य नए राजनीतिक समूहों को संगठित होने का समय मिल रहा है, जिससे मुकाबला और कठिन हो सकता है।


लोकतंत्र की बहाली का समर्थन

तारिक रहमान खुद को लोकतंत्र और निर्वाचित सरकार की बहाली का समर्थक बताते हैं। हाल ही में एक सभा में उन्होंने कहा कि केवल लोकतंत्र ही देश को मौजूदा संकट से बाहर निकाल सकता है। उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं से लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करने की अपील की।


लंबे निर्वासन के बाद नई जिम्मेदारी

तारिक रहमान 2008 में जेल से रिहा होने के बाद यूनाइटेड किंगडम चले गए थे और तब से वहीं रह रहे थे। लगभग डेढ़ दशक बाद उनकी वापसी बांग्लादेश की राजनीति को नई दिशा दे सकती है। यदि बीएनपी सत्ता में आती है और तारिक रहमान प्रधानमंत्री बनते हैं, तो उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती देश को एकजुट करना और लोकतांत्रिक स्थिरता बहाल करना होगा।