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दक्षिण एशिया में 2025: राजनीतिक उथल-पुथल और मानवता की चुनौतियाँ

2025 में दक्षिण एशिया का राजनीतिक परिदृश्य अस्थिरता से भरा रहा, जिसमें नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, श्रीलंका और म्यांमार में महत्वपूर्ण घटनाएँ हुईं। नेपाल में युवा नेतृत्व के विरोध प्रदर्शन, बांग्लादेश में राजनीतिक हिंसा, पाकिस्तान में न्यायिक जटिलताएँ, और अफगानिस्तान में भूकंप के बाद राहत कार्य की सीमाएँ प्रमुख मुद्दे रहे। जानें इन देशों में क्या हुआ और कैसे इन घटनाओं ने क्षेत्र की स्थिरता को प्रभावित किया।
 

दक्षिण एशिया का अस्थिर राजनीतिक परिदृश्य


2025 में दक्षिण एशिया का राजनीतिक और सामाजिक माहौल काफी अस्थिर रहा। भारत के पड़ोसी देशों में राजनीतिक संकट, युवा आंदोलनों, आपातकालीन स्थितियों और मानवतावादी चुनौतियों ने चिंता का माहौल उत्पन्न किया। स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के राजनीतिक वैज्ञानिक फ्रांसिस फुकुयामा के अनुसार, आज स्थिरता के लिए सबसे बड़ा खतरा विचारधारा या आक्रमण नहीं, बल्कि राजनीतिक वैधता का पतन है। यह विचार इस क्षेत्र में हाल की घटनाओं के संदर्भ में अत्यंत प्रासंगिक प्रतीत होता है।


नेपाल: युवा नेतृत्व के साथ विरोध की लहर

नेपाल में 2025 में जेनरेशन Z के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। ये प्रदर्शन सरकार द्वारा 26 प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, यूट्यूब और X को ब्लॉक करने और बढ़ते भ्रष्टाचार के खिलाफ थे। युवाओं ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला माना। शुरुआत में ये प्रदर्शन शांतिपूर्ण थे, लेकिन पुलिस की गोलीबारी के बाद कम से कम 19 लोगों की जान गई और सैकड़ों घायल हुए। प्रदर्शनकारियों ने संसद और सरकारी भवनों के पास की पाबंदियों को तोड़ा और विरोध बढ़ने पर हवाई अड्डा भी अस्थायी रूप से बंद कर दिया।


इस उथल-पुथल के परिणामस्वरूप गृह मंत्री रमेश लेखक ने इस्तीफा दिया और इसके एक दिन बाद प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को भी पद छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। इस संकट के बाद नेपाल में सुशीला कार्की के नेतृत्व में एक अस्थायी सरकार का गठन हुआ, जिन्होंने ऑनलाइन मतदान और युवा प्रतिनिधियों के परामर्श से प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला।


बांग्लादेश: राजनीतिक उथल-पुथल और हिंसा

बांग्लादेश में 2024 में तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना के पतन के बाद राजनीतिक अस्थिरता और हिंसा का दौर जारी रहा। 2025 में हसीना को ढाका के अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने मानवता के खिलाफ अपराध के आरोप में मृत्युदंड सुनाया। इसके अलावा, उन्हें तीन अलग-अलग मामलों में भ्रष्टाचार के लिए 21 साल की जेल की सजा भी दी गई, जबकि उनके बच्चों को पांच-पांच साल की सजा सुनाई गई।


हसीना ने इस फैसले को पक्षपाती और राजनीतिक रूप से प्रेरित बताया। राजनीतिक हिंसा भी बढ़ी, जिसमें इंक़लाब मंच के युवा नेता शरिफ उस्मान हादी को 12 दिसंबर को ढाका में गोली मार दी गई। उनकी हत्या के बाद देशभर में दंगे भड़क उठे, जिसमें प्रदर्शनकारियों ने कई सरकारी कार्यालयों और मीडिया हाउस को आग लगा दी।


अंतरिम सरकार के प्रमुख नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस ने हादी की मौत पर शोक व्यक्त किया और उनकी विचारधारा को भविष्य की शासन व्यवस्था का मार्गदर्शन बताया। इसके अलावा, हिंदू युवा दिपु चंद्र दास की धार्मिक आरोपों के बाद निर्मम हत्या कर दी गई और बाद में सात संदिग्धों को गिरफ्तार किया गया।


पाकिस्तान: न्यायिक जटिलताएँ और राजनीतिक तनाव

पाकिस्तान में राजनीतिक संकट इस वर्ष न्यायालयों, जेलों और सड़कों पर फैला रहा। 20 दिसंबर को विशेष न्यायालय ने पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और उनकी पत्नी बुशरा बीबी को तोशाखाना भ्रष्टाचार मामले में 17 साल की जेल और भारी जुर्माने की सजा सुनाई। खान ने इसे राजनीतिक रूप से प्रेरित बताते हुए चुनौती देने की बात कही। जेल के बाहर पीटीआई समर्थकों ने प्रदर्शन किया। खान की बहनें, एलीमा खान और नोरीन नियाज़ ने जेल के बाहर सिट-इन किया, लेकिन पुलिस कार्रवाई और सुरक्षा के नाम पर कई रुकावटें आईं।


अफगानिस्तान: भूकंप और राहत कार्य की सीमाएँ

अगस्त-सितंबर में अफगानिस्तान के पूर्वी प्रांतों में 6.0 तीव्रता का भूकंप आया, जिसमें 2,200 से अधिक लोगों की जान गई। तालिबान सरकार ने बचाव दल और राहत शिविर तैनात किए, लेकिन महिलाओं और लड़कियों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं में देरी हुई। अधिकांश चिकित्सा कर्मी पुरुष थे और तालिबानी नियमों के अनुसार महिलाओं को पुरुष डॉक्टर से इलाज नहीं मिल सकता था।


श्रीलंका: चक्रवात और आपदा प्रबंधन की कमी

श्रीलंका में 2025 में चक्रवात डिटवाह और मानसून की भारी बारिश से बाढ़ और भूस्खलन हुआ। 600 से अधिक लोगों की मौत हुई, दो मिलियन से अधिक प्रभावित हुए। सरकारी राहत कार्य और एहतियाती उपायों के बावजूद खराब समन्वय और तैयारी के कारण स्थिति बिगड़ी।


म्यांमार: नज़रबंदी और मानवाधिकार संकट

म्यांमार में आम नज़र नहीं आ रहा है, लेकिन सबसे प्रमुख राजनीतिक नेता आंग सान सू की अभी भी नजरबंदी में हैं। उन्हें 27 साल की कुल सजा सुनाई गई है। उनकी सेहत और संपर्क सीमित हैं। इसी साल उनके बेटे ने बताया कि उन्होंने अपनी मां से दो साल में कोई संदेश नहीं पाया।