पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच बढ़ता तनाव: रक्षा मंत्री का कड़ा बयान
पाकिस्तान-अफगानिस्तान तनाव की नई परतें
पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच तनाव: हाल ही में पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा मोहम्मद आसिफ ने अफगानिस्तान को 'नंबर वन दुश्मन' और 'गद्दार' करार दिया है। यह बयान उन्होंने पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में दिया, जिसमें उन्होंने अफगान शरणार्थियों के बड़े पैमाने पर निर्वासन का समर्थन किया।
आसिफ ने कहा कि पाकिस्तान ने अफगान नागरिकों को कई वर्षों तक शरण, रोजगार और सुरक्षा प्रदान की, लेकिन इसके बदले में उन्हें 'धोखा' मिला। उन्होंने आरोप लगाया कि अफगान नागरिक पाकिस्तान में व्यापार कर रहे हैं और अफगानिस्तान की सत्ता में भी उनकी भूमिका है। आसिफ ने यह भी कहा कि कई तालिबान नेता पाकिस्तान में अपने परिवारों के साथ रहते हैं और पाकिस्तान के खिलाफ काम करने वाले आतंकियों को शरण देते हैं।
मेहमाननवाजी का दुरुपयोग
गलत फायदा उठाने का आरोप: रक्षा मंत्री ने अपने भाषण में कहा कि अफगान शरणार्थियों ने पाकिस्तान की मेहमाननवाजी का गलत फायदा उठाया है। उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग पाकिस्तान में बड़े व्यवसाय स्थापित कर चुके हैं, वे पाकिस्तान के प्रति अपनी निष्ठा नहीं दिखाते। आसिफ के अनुसार, तालिबान की वापसी के बाद पाकिस्तान में आतंकवादी हमलों में वृद्धि हुई है, जिसके लिए वे अफगान भूमि को जिम्मेदार मानते हैं।
डूरंड रेखा पर तनाव
गोलीबारी और हवाई हमले: यह बयान ऐसे समय में आया है जब डूरंड रेखा के पास गोलीबारी और हवाई हमलों की घटनाएं बढ़ी हैं। इसके साथ ही, अफगान विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी की नई दिल्ली यात्रा को लेकर पाकिस्तान में असंतोष है। पाकिस्तान इसे तालिबान पर अपने 'रणनीतिक नियंत्रण' के कमजोर होने के रूप में देख रहा है।
पाकिस्तान की विदेश नीति में बदलाव
नई दिशा: ख्वाजा आसिफ का यह बयान पाकिस्तान की विदेश नीति में महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत देता है। पहले पाकिस्तान तालिबान का समर्थन करता था, लेकिन अब वह उसे अपने सुरक्षा संकट का मुख्य कारण मान रहा है। उन्होंने चेतावनी दी कि पाकिस्तान का धैर्य अब समाप्त हो चुका है और अफगान धरती से आतंक फैलाने वालों के खिलाफ कठोर कदम उठाए जाएंगे। पाकिस्तान सरकार ने अक्टूबर 2023 से बिना वैध दस्तावेजों वाले विदेशी नागरिकों को देश से निकालने का अभियान शुरू किया है, जिसे राष्ट्रीय सुरक्षा का हिस्सा बताया गया है, लेकिन इसे मानवाधिकार संगठनों द्वारा मानवीय संकट के रूप में देखा जा रहा है।