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पाकिस्तान और तालिबान के बीच वार्ता का विफलता: तनाव और बढ़ा

हाल ही में इस्तांबुल में पाकिस्तान और तालिबान के बीच हुई वार्ता विफल रही, जिससे दोनों पक्षों के बीच तनाव और बढ़ गया है। पाकिस्तान ने टीटीपी के हमलों के लिए तालिबान को जिम्मेदार ठहराया, जबकि तालिबान ने पाकिस्तान की नीतियों को दोषी ठहराया। इस स्थिति ने दोनों देशों के बीच अविश्वास को बढ़ा दिया है। जानें इस विवाद के पीछे के कारण और भविष्य में क्या हो सकता है।
 

बातचीत का उद्देश्य और परिणाम


अंतरराष्ट्रीय समाचार: इस्तांबुल में आयोजित वार्ता का मुख्य उद्देश्य तनाव को कम करना था, लेकिन दोनों पक्ष एक-दूसरे पर आरोप लगाते रहे। पाकिस्तान ने दावा किया कि टीटीपी को अफगानिस्तान में सुरक्षित ठिकाना मिल रहा है, जिससे वह पाकिस्तान में हमले कर रहा है। तालिबान ने इसका जवाब देते हुए कहा कि पाकिस्तान असली समस्या को छिपा रहा है। वार्ता का कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला और दोनों पक्ष निराश होकर लौटे। इस विफलता के बाद बयानबाजी और तीखी हो गई, जिससे दोनों के बीच की दूरी और बढ़ गई।


तालिबान का बयान

वार्ता के असफल होने के बाद तालिबान के प्रवक्ता ज़बीउल्लाह मुजाहिद ने एक विस्तृत बयान जारी किया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान झूठा प्रचार कर रहा है कि टीटीपी तालिबान के सत्ता में आने के बाद मजबूत हुई। तालिबान ने यह भी कहा कि टीटीपी का गठन पहले ही हो चुका था और उन्होंने कई घटनाओं और तारीखों का उल्लेख किया। उनका कहना था कि पाकिस्तान ने खुद इस समस्या को जन्म दिया है। तालिबान ने स्पष्ट किया कि यह पाकिस्तान की आंतरिक समस्या है।


टीटीपी का उदय

तालिबान के अनुसार, टीटीपी का उदय 2002 में हुआ, जब पाकिस्तान सेना ने वजीरिस्तान और उसके आस-पास के क्षेत्रों में अभियान चलाए। अमेरिका के साथ मिलकर किए गए ड्रोन और हवाई हमलों ने स्थानीय पश्तून जनजातियों में गुस्सा पैदा किया, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने संगठित प्रतिरोध किया। तालिबान का कहना है कि उस समय वे सत्ता में नहीं थे, इसलिए उनकी भूमिका नहीं हो सकती। यह समयरेखा पाकिस्तान के आरोपों को कमजोर करती है।


पाकिस्तान की कार्रवाई

तालिबान ने 2002 में शुरू हुए ऑपरेशन अल-मिज़ान का उदाहरण दिया, जिसमें कई गांव प्रभावित हुए और हिंसा बढ़ी। इस बल प्रयोग ने स्थानीय लोगों को हथियार उठाने पर मजबूर किया। संघर्ष धीरे-धीरे बढ़ा और टीटीपी का नेटवर्क मजबूत हुआ। तालिबान का कहना है कि यह सब उनके सत्ता में आने से पहले से चल रहा था, इसलिए मौजूदा हालात के लिए उन्हें दोष देना गलत है।


पाकिस्तान की चिंताएं

पाकिस्तान लंबे समय से टीटीपी के हमलों का सामना कर रहा है, जिसमें सेना की चौकियों, पुलिस और सरकारी ठिकानों को निशाना बनाया गया है। पाकिस्तान का कहना है कि तालिबान टीटीपी को रोकने में मदद नहीं कर रहा, जबकि तालिबान का कहना है कि पाकिस्तान अपनी नीतियों की असफलता को छिपा रहा है। दोनों के बीच आरोप-प्रत्यारोप ने अविश्वास को बढ़ा दिया है।


तालिबान के लौटने के बाद का परिदृश्य

2021 में तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद, पाकिस्तान ने सोचा कि वे टीटीपी को नियंत्रित करने में मदद करेंगे। हालांकि, तालिबान ने बातचीत की पेशकश की लेकिन संघर्ष में शामिल होने से मना कर दिया। इससे हमले बढ़े और दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ गया। इस्तांबुल की वार्ता इस तनाव की चरम स्थिति थी। अब दोनों पक्ष एक-दूसरे के प्रति सख्त रुख अपनाए हुए हैं।


भविष्य की स्थिति

वार्ता के टूटने के बाद कोई नई बैठक निर्धारित नहीं की गई है। सीमा पर असुरक्षा बढ़ने की संभावना है, जो व्यापार और आवाजाही को प्रभावित कर सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि बिना आपसी सहयोग के समस्या का समाधान संभव नहीं है। दोनों देश अपनी-अपनी स्थिति पर अड़े हुए हैं, और यह मुद्दा अब निर्णायक मोड़ पर है। आने वाले दिनों में हालात और गंभीर हो सकते हैं।