पाकिस्तान का 27वां संविधान संशोधन: क्या लोकतंत्र की नींव को हिला रहा है?
पाकिस्तान में संविधान संशोधन पर बहस
नई दिल्ली : पाकिस्तान वर्तमान में अपने 27वें संविधान संशोधन को लेकर गहन राजनीतिक और सामाजिक चर्चाओं का सामना कर रहा है। यह संशोधन देश की राजनीतिक संरचना में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है। इसमें अनुच्छेद 243 में संशोधन का प्रस्ताव है, जो सशस्त्र बलों की कमान और नियंत्रण से संबंधित है। इसके अलावा, न्यायपालिका, संसाधनों का वितरण और प्रांतीय स्वायत्तता पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है। आलोचकों का मानना है कि यह संशोधन नागरिक सरकार से सत्ता को सेना के हाथों में अधिक केंद्रित कर सकता है, जबकि समर्थकों का कहना है कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ावा देगा।
विशेषज्ञों की चिंता: सेना का बढ़ता प्रभाव
सेना के बढ़ते प्रभाव को लेकर विशेषज्ञों की चिंता
रक्षा विशेषज्ञ आयशा सिद्दीका का कहना है कि सेना प्रमुख असीम मुनीर इस संशोधन के माध्यम से अपने अधिकारों का विस्तार करना चाहते हैं। उनका कहना है कि अतीत में कई सैन्य नेता ऐसा करने का प्रयास कर चुके हैं, लेकिन असफल रहे हैं। सिद्दीका ने चेतावनी दी है कि यदि यह संशोधन पारित होता है, तो यह पाकिस्तान में लोकतांत्रिक निगरानी को सीमित कर सकता है और सैन्य प्रभुत्व को स्थायी बना सकता है। यह मुद्दा देश में पुराने डर “सैन्य शासन की वापसी” को फिर से जीवित कर रहा है।
18वें संशोधन के बाद की स्थिति
18वें संशोधन के बाद की स्थिति और नई आशंकाएं
2010 में लागू हुआ 18वां संविधान संशोधन प्रांतों को सशक्त बनाने और सत्ता के विकेंद्रीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। इससे सेना के केंद्रीकृत नियंत्रण को सीमित किया गया था। अब राजनीतिक विश्लेषकों को चिंता है कि 27वां संशोधन इस उपलब्धि को पलट सकता है। पूर्व सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा ने भी एक समय 18वें संशोधन की आलोचना की थी। विपक्षी दलों को डर है कि नया संशोधन एक बार फिर सत्ता को संघीय और सैन्य नियंत्रण में ले आएगा, जिससे प्रांतीय अधिकार कमजोर हो जाएंगे।
कमान संरचना में बदलाव
कमान संरचना में बदलाव और CDS की नई भूमिका
रिपोर्टों के अनुसार, संशोधन में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) की भूमिका बनाने का प्रस्ताव भी शामिल है। इसका उद्देश्य तीनों सशस्त्र सेनाओं के बीच समन्वय बढ़ाना बताया जा रहा है। हालांकि, आलोचकों का कहना है कि यह कदम सेना को अत्यधिक केंद्रीकृत शक्ति देगा और निर्वाचित नेताओं की जवाबदेही को कम करेगा। इससे लोकतंत्र और पारदर्शिता पर खतरा मंडरा सकता है।
संविधान में संभावित बदलाव
न्यायपालिका और राष्ट्रपति की भूमिका पर संभावित प्रभाव
संशोधन से राष्ट्रपति के अधिकारों में वृद्धि की संभावना जताई जा रही है, जिससे नागरिक प्रशासन पर अप्रत्यक्ष रूप से सैन्य प्रभाव बढ़ सकता है। साथ ही, न्यायपालिका के निर्णयों में सैन्य प्रभाव की संभावना को लेकर भी चिंता व्यक्त की जा रही है। इससे पाकिस्तान के संवैधानिक ढांचे में शक्ति संतुलन स्थायी रूप से विकृत हो सकता है।
लोकतंत्र या सैन्य केंद्रीकरण?
लोकतंत्र या सैन्य केंद्रीकरण का नया दौर?
पाकिस्तान का 27वां संविधान संशोधन न केवल सत्ता के वितरण को प्रभावित कर सकता है, बल्कि लोकतंत्र की जड़ों को भी हिला सकता है। समर्थकों का कहना है कि यह देश की स्थिरता और सुरक्षा सुनिश्चित करेगा, जबकि विरोधियों का मानना है कि यह “सॉफ्ट मिलिट्री रूल” की ओर वापसी है। देश एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहां आने वाले फैसले पाकिस्तान के लोकतांत्रिक भविष्य को परिभाषित करेंगे।