पाकिस्तान की चार मोर्चों पर युद्ध की चुनौती: क्या है स्थिति?
पाकिस्तान की जटिल सुरक्षा स्थिति
नई दिल्ली : भारत ने हमेशा पाकिस्तान को दो मोर्चों पर युद्ध में उलझाने की कोशिश की है, और इसी रणनीति के तहत उसने पीओके का एक हिस्सा चीन को सौंपा। पूर्व चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत अक्सर ढाई मोर्चों का उल्लेख करते थे, जिसमें एक चीन, दूसरा पाकिस्तान और तीसरा आंतरिक संघर्ष शामिल था। लेकिन अब पाकिस्तान की स्थिति और भी जटिल हो गई है। उसे अब चार मोर्चों पर युद्ध का सामना करना पड़ सकता है, जो लगभग 8,000 किलोमीटर लंबी सीमा पर फैले हैं। इस चुनौती का सामना करने के लिए पाकिस्तान की तैयारी सीमित नजर आती है।
अफगानिस्तान से बढ़ता तनाव
अफगानिस्तान से बढ़ते तनाव
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने स्पष्ट रूप से कहा है कि अफगानिस्तान से तनाव के दौरान भारत की ओर से हमले की संभावना है। लंबे समय से पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में तालिबान को नियंत्रित करने का प्रयास किया, लेकिन खैबर पख्तूनख्वा में बढ़ते तनाव और तालिबान के संबंधों ने स्थिति को और जटिल बना दिया है। वर्तमान में, अफगानिस्तान और पाकिस्तान खुद डूरंड लाइन पर संघर्ष कर रहे हैं, जबकि भारत इस मोर्चे पर मजबूत स्थिति में है।
लंबी सीमा और बहु-मोर्चा चुनौती
लंबी सीमा और बहु-मोर्चा चुनौती
भारत और पाकिस्तान के बीच 3,323 किलोमीटर लंबी सीमा है, जबकि अफगानिस्तान के साथ 2,430 किलोमीटर की सीमा साझा की गई है। पाकिस्तान की मुख्य चिंता पश्चिमी मोर्चे की है, क्योंकि उसने पहले यहां पर्याप्त सैन्य तैनाती नहीं की। भू-राजनीतिक विश्लेषक सुमित अहलावत के अनुसार, यदि अफगानिस्तान और भारत दोनों से संघर्ष होता है, तो पाकिस्तान को 5,753 किलोमीटर लंबी सीमा पर व्यस्त रहना होगा।
ईरान और समुद्री सीमा की चुनौती
ईरान और समुद्री सीमा की चुनौती
पाकिस्तान को ईरान से लगती 959 किलोमीटर लंबी सीमा पर बलूच विद्रोहियों की सक्रियता की संभावना भी है। इसके अलावा, 1,046 किलोमीटर लंबी समुद्री सीमा भी सुरक्षा के लिहाज से चुनौतीपूर्ण है। कुल मिलाकर, लगभग 8,000 किलोमीटर की सीमा पर पाकिस्तान को कई मोर्चों पर सतर्क रहना होगा। चीन से लगती 438 किलोमीटर लंबी पीओके सीमा अब पाकिस्तान के लिए एक छोटा राहत का मोर्चा बनकर रह गई है।
आर्थिक सीमाओं और सैन्य अक्षमता
आर्थिक सीमाओं और सैन्य अक्षमता
पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति कमजोर है, इसलिए इतनी लंबी और बहु-मोर्चा युद्ध को लंबे समय तक लड़ पाना उसके लिए कठिन है। यही कारण है कि पाकिस्तान अफगानिस्तान जैसे छोटे और अपेक्षाकृत कमजोर देश से केवल शांति चाहता है।