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पाकिस्तान में राजनीतिक उथल-पुथल: टीएलपी का नया गठबंधन और उसकी मांगें

पाकिस्तान में राजनीतिक संकट गहराता जा रहा है, जहां तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) ने नए गठबंधन का गठन किया है। इस गठबंधन की प्रमुख मांगें हैं कि टीएलपी के सभी गिरफ्तार सदस्यों को रिहा किया जाए। मुरीदके नरसंहार के बाद टीएलपी ने विरोध प्रदर्शन तेज कर दिए हैं, जिससे सुरक्षा प्रतिष्ठान पर खतरा बढ़ गया है। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी इस आंदोलन का समर्थन किया है। जानें इस संकट के पीछे की वजहें और पाकिस्तान की आंतरिक चुनौतियाँ।
 

पाकिस्तान की राजनीतिक चुनौतियाँ


पाकिस्तान में राजनीतिक संकट: आने वाले दिनों में पाकिस्तान को राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) सहित कई धार्मिक संगठनों ने मिलकर 'अहल-ए-सुन्नाह पाकिस्तान' नामक एक नया गठबंधन बनाया है। यह गठबंधन देश के आंतरिक राजनीतिक और सामाजिक समीकरणों में और अधिक उथल-पुथल पैदा कर सकता है।


उग्र संगठनों की मांगें

इस नए गठबंधन में शामिल संगठन काफी उग्र हैं। मुरीदके नरसंहार के बाद टीएलपी ने अपनी विरोध की भावना को और तेज कर दिया है। उन्होंने सरकार से कई मांगें की हैं और चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगें पूरी नहीं होती हैं, तो गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। मुरीदके में हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान सुरक्षा बलों द्वारा टीएलपी के कुछ कार्यकर्ताओं की मौत ने संगठन और इसके समर्थकों को और अधिक संवेदनशील बना दिया है।


टीएलपी की प्रमुख मांगें

इस गठबंधन की मुख्य मांग है कि टीएलपी के सभी गिरफ्तार सदस्यों को रिहा किया जाए। पाकिस्तान पहले से ही कई मोर्चों पर संघर्ष में उलझा हुआ है। अफगानिस्तान के साथ इसके संबंध तनावपूर्ण हैं, और किसी भी समय बड़ा युद्ध भड़क सकता है।


आंतरिक समस्याएँ

पाकिस्तान कई आंतरिक चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिसमें आर्थिक मंदी और बेरोजगारी प्रमुख हैं। आतंकवादियों और उग्रवादी संगठनों को समर्थन देने के आरोप भी पाकिस्तान पर लगे हैं। भारतीय खुफिया एजेंसियाँ लगातार पाकिस्तान पर नजर रखे हुए हैं।


सुरक्षा प्रतिष्ठान पर खतरा

अधिकारियों का कहना है कि टीएलपी के नेतृत्व वाला गठबंधन पाकिस्तान के सुरक्षा प्रतिष्ठान के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है। इस गठबंधन को कई राजनीतिक संगठनों का समर्थन प्राप्त है, और विभिन्न धार्मिक नेताओं का समर्थन इसे और भी प्रभावशाली बनाता है।


सत्ता प्रतिष्ठान की प्रतिक्रिया

पाकिस्तान की सत्ता प्रणाली इस गठबंधन को हल्के में नहीं ले रही है। हाल के हफ्तों में टीएलपी के लिए समर्थन तेजी से बढ़ा है। 22 अक्टूबर को होने वाली बैठक के बाद देशभर में धरना-प्रदर्शनों में हजारों लोगों के शामिल होने की संभावना है। पंजाब समेत कई प्रांतों में रैलियों की योजना बनाई गई है।


इमरान खान का समर्थन

पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपनी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के सदस्यों को टीएलपी का समर्थन करने और प्रदर्शनों में भाग लेने का निर्देश दिया है। सभी की निगाहें इस्लामाबाद और तालिबान के बीच शांति वार्ता पर टिकी हैं। विश्लेषकों का मानना है कि तालिबान के साथ स्थिति नाजुक है और पाकिस्तान को आंतरिक मोर्चे पर और संघर्ष का सामना करना पड़ सकता है।


बीएलए और अन्य तनावपूर्ण क्षेत्र

पाकिस्तान को बलूचिस्तान नेशनलिस्ट आर्मी (बीएलए) से भी कड़ी चुनौती मिल रही है। इसके अलावा, गुलाम कश्मीर में स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है। टीएलपी की सक्रियता के चलते पंजाब सरकार ने धारा 144 लागू कर दी है, जिससे सभी प्रकार के जुलूस, रैलियों और समारोहों पर रोक लगा दी गई है। सुरक्षा के कड़े इंतजामों के बावजूद विशेषज्ञ मानते हैं कि यह विरोध प्रदर्शन काफी हिंसक हो सकता है।