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फ्रांस में 'ब्लॉक एवरीथिंग' आंदोलन से जनजीवन प्रभावित, 200 से अधिक गिरफ्तार

फ्रांस में 'ब्लॉक एवरीथिंग' आंदोलन ने जनजीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है, जिसमें 200 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है। यह आंदोलन प्रधानमंत्री बायरू की सरकार के गिरने के बाद शुरू हुआ और राष्ट्रपति मैक्रों द्वारा नए प्रधानमंत्री की नियुक्ति के बाद और तेज हो गया। प्रदर्शनकारियों ने महंगाई और मितव्ययिता उपायों के खिलाफ आवाज उठाई है। जानें इस आंदोलन की पूरी कहानी और इसके पीछे की वजहें।
 

फ्रांस में प्रदर्शनों का बढ़ता प्रभाव

पेरिस। फ्रांस में 'ब्लॉक एवरीथिंग' आंदोलन के चलते जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है। पुलिस ने अब तक 200 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया है।


ये विरोध प्रदर्शन प्रधानमंत्री फ्रांस्वा बायरू की सरकार के गिरने के बाद राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों द्वारा सेबास्टियन लेकॉर्नू को नया प्रधानमंत्री नियुक्त करने के बाद और तेज हो गए हैं।


फ्रांसीसी प्रशासन ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए 80,000 पुलिसकर्मी और जेंडरम तैनात किए हैं। हजारों प्रदर्शनकारियों ने सड़कों पर आगजनी, बैरिकेड्स और यातायात अवरोध उत्पन्न किए। पेरिस का रिंग रोड, जो यूरोप का सबसे व्यस्त शहरी मार्ग है, भी प्रदर्शनकारियों द्वारा अवरुद्ध करने का प्रयास किया गया। बुधवार सुबह तक, पेरिस क्षेत्र में 95 और राजधानी के बाहर आठ गिरफ्तारियां हुईं।


पेरिस के पूर्वी क्षेत्र पोर्त द मोन्त्रुई में, प्रदर्शनकारियों ने कूड़ेदान में आग लगाई और ट्राम की पटरियों को बाधित करने का प्रयास किया। पुलिस ने तुरंत अवरोध हटाकर भीड़ को तितर-बितर किया।


प्रदर्शनकारी हाईवे पर भी पहुंचे, लेकिन सुरक्षाबलों ने उन्हें रोक दिया। पेरिस के व्यस्ततम रेलवे स्टेशन 'गारे द नॉर्द' के आसपास स्थिति तनावपूर्ण हो गई, जहां सैकड़ों लोग इकट्ठा हो गए। पुलिस ने स्टेशन का रास्ता बंद कर दिया और भीड़ को नियंत्रित करने के लिए आंसू गैस का इस्तेमाल किया, जिससे आम यात्री भी प्रभावित हुए।


एक प्रदर्शनकारी ने कहा, “हम अब और बर्दाश्त नहीं करेंगे। आज हम मैक्रों को यह दिखाने आए हैं कि जनता अब तंग आ चुकी है। वह लोगों की आवाज को यूं ही नजरअंदाज नहीं कर सकते।”


जानकारी के अनुसार, यह आंदोलन सोशल मीडिया और टेलीग्राम चैनलों के माध्यम से संगठित किया गया है। महंगाई, मितव्ययिता उपायों और कथित “अकार्यकुशल राजनीतिक व्यवस्था” के खिलाफ जनता का गुस्सा स्पष्ट है। हालांकि, 2018 के 'येलो वेस्ट' प्रदर्शनों की तुलना में यह आंदोलन कम संगठित है, लेकिन ऑनलाइन समर्थन काफी मिल रहा है।


दो प्रमुख यूनियनों, सीजीटी और एसयूडी, ने बुधवार को प्रदर्शनों का समर्थन किया है। इसके अलावा, 18 सितंबर को व्यापक हड़ताल की भी घोषणा की गई है। एक इप्सोस सर्वेक्षण के अनुसार, लगभग 46 प्रतिशत फ्रांसीसी नागरिकों ने इस आंदोलन का समर्थन किया है, जिसमें वामपंथियों के साथ-साथ दक्षिणपंथी नेशनल रैली के आधे से अधिक समर्थक भी शामिल हैं।


स्वास्थ्यकर्मी और फार्मेसी कर्मचारी भी मेडिकल रिइम्बर्समेंट में कटौती के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं। यूनियनों ने चेतावनी दी है कि इससे फ्रांस की 20,000 फार्मेसियों में से लगभग 6,000 बंद हो सकती हैं।


लोगों का गुस्सा बायरू सरकार के उन प्रस्तावों पर भी है, जिनमें दो सार्वजनिक अवकाश खत्म करने और बजट घाटा कम करने जैसे कठोर कदम शामिल थे। कई प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति मैक्रों से संसद भंग कर तुरंत नए चुनाव कराने की मांग की है।