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बर्लिन में भारतीय छात्रों की शिक्षा का सपना संकट में: वीजा नियमों में बदलाव का असर

बर्लिन के अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रहे भारतीय छात्रों का सपना अब चिंता में बदल गया है। वीजा नियमों में बदलाव के कारण उन्हें देश छोड़ने की चेतावनी दी जा रही है, जबकि उन्होंने लाखों रुपये की ट्यूशन फीस चुकाई है। विशेषज्ञों का कहना है कि हाइब्रिड और ऑनलाइन कार्यक्रमों के बीच तालमेल की कमी इस संकट का मुख्य कारण है। छात्रों को अब यह समझने में कठिनाई हो रही है कि क्या उनके कार्यक्रम वीजा नियमों के अनुरूप हैं। इस स्थिति ने भारतीय परिवारों के लिए एक चेतावनी भी दी है कि उन्हें प्रवेश और शुल्क की पूरी जानकारी पहले से लेनी चाहिए।
 

बर्लिन में भारतीय छात्रों की चिंता


बर्लिन के अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय (IU) में अध्ययन कर रहे भारतीय छात्रों का सपना अब चिंता और अनिश्चितता में बदल गया है। पहले यह अवसर उन्हें वैश्विक स्तर की डिग्री, बेहतर करियर और यूरोप में स्थायी जीवन का मार्ग दिखाता था, लेकिन अब छात्रों को वीजा नोटिस, न्यायिक अपीलों और संभावित निर्वासन जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।


रिपोर्टों के अनुसार, लाखों रुपये की ट्यूशन फीस और शिक्षा ऋण चुकाने के बाद छात्रों को यह बताया जा रहा है कि उन्हें देश छोड़ना होगा। यह स्थिति इसलिए उत्पन्न हुई है क्योंकि जर्मनी के आव्रजन अधिकारियों ने उनके विश्वविद्यालय कार्यक्रमों की व्याख्या में बदलाव किया है। कई छात्र इस बदलाव को समझने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि उन्हें अपने शोध प्रबंध और अंतिम मॉड्यूल पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए था.


विशेषज्ञों की राय

विशेषज्ञों का मानना है कि इस संकट की जड़ हाइब्रिड और ऑनलाइन कार्यक्रमों के प्रचार और वीजा अनुपालन के बीच तालमेल की कमी में है। अधिकांश छात्रों ने समझा था कि उनका नामांकन वैध, आमने-सामने पढ़ाई वाले कार्यक्रम में है, लेकिन अधिकारियों ने सवाल उठाया कि क्या ये पाठ्यक्रम वीजा नियमों के अनुरूप हैं। यूनिवर्सिटी लिविंग के सह-संस्थापक मयंक माहेश्वरी बताते हैं कि छात्र अक्सर नामांकन के समय उपलब्ध जानकारी के आधार पर निर्णय लेते हैं, और नियामक बदलाव या अलग व्याख्याओं के कारण वे अनिश्चितता में फंस जाते हैं।


गंभीर परिणाम

इस स्थिति के गंभीर परिणाम सामने आए हैं। कई छात्रों ने 20,000 यूरो से अधिक का निवेश किया था, जो उनके घर से लिए गए शिक्षा ऋणों के माध्यम से आया। कुछ को बताया गया कि उनकी पढ़ाई अब केवल भारत से दूरस्थ रूप में पूरी हो सकती है, जबकि उन्हें जर्मन परिसर में अध्ययन का वादा किया गया था। माहेश्वरी का कहना है कि समस्या किसी एक संस्था या प्राधिकरण की नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की असंगति से उत्पन्न होती है।


भारतीय परिवारों के लिए सलाह

विदेश में शिक्षा लेने वाले भारतीय परिवारों के लिए यह एक चेतावनी है कि प्रवेश, शुल्क, कार्यक्रम की संरचना, शिक्षण प्रारूप और वीजा नियमों की पूरी तरह से जांच करना आवश्यक है। हाइब्रिड और लचीले पाठ्यक्रम तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं, लेकिन नियामक ढांचे अक्सर इनसे पीछे रह जाते हैं। माहेश्वरी का कहना है कि प्रारंभिक और पारदर्शी जानकारी छात्रों की अनिश्चितता को कम करने में मदद कर सकती है।


भविष्य की अनिश्चितता

फिलहाल, बर्लिन में भारतीय छात्र कानूनी रूप से वहां हैं और अध्ययन कर रहे हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि स्नातक होने तक उन्हें रहने की अनुमति मिलेगी या नहीं। माहेश्वरी के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय शिक्षा विश्वास और पूर्वानुमान पर निर्भर करती है। बर्लिन में हुए इस विवाद ने यह स्पष्ट किया है कि जब व्यवस्थाएं छात्रों के हित में काम नहीं करतीं, तो उनके सपनों और प्रयासों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।