बांग्लादेश की राजनीति में नया मोड़: शेख हसीना का प्रत्यर्पण विवाद
बांग्लादेश की राजनीतिक स्थिति में उथल-पुथल
नई दिल्ली: बांग्लादेश की राजनीतिक स्थिति एक बार फिर से संकट में है। इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना और पूर्व गृह मंत्री असदुज्जामान खान को मौत की सजा सुनाए जाने के बाद, ढाका ने भारत से उनका प्रत्यर्पण मांगने का निर्णय लिया है।
भारत से प्रत्यर्पण की मांग
बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने सोमवार को एक आधिकारिक बयान जारी करते हुए भारत से अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना और पूर्व गृह मंत्री असदुज्जामान खान को तुरंत सौंपने की अपील की है। मंत्रालय ने कहा कि इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल ने दोनों को जुलाई 2025 में हुए छात्र आंदोलन के दौरान की गई कार्रवाई के लिए दोषी ठहराया है। ढाका ने चेतावनी दी है कि यदि किसी देश ने उन्हें शरण दी, तो यह 'अमैत्रीपूर्ण व्यवहार' होगा और न्याय का मजाक बनेगा। मंत्रालय ने यह भी कहा कि दोनों देशों के बीच प्रत्यर्पण संधि लागू है।
जुलाई नरसंहार में दोषी ठहराए गए
इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल ने अपने निर्णय में कहा कि आंदोलन के दौरान सरकारी बलों की कार्रवाई में सैकड़ों छात्रों की जान गई। अदालत ने इसे 'क्राइम्स अगेंस्ट ह्यूमैनिटी' करार देते हुए हसीना और खान को फांसी की सजा सुनाई है। असदुज्जामान खान को प्रदर्शनकारियों पर 'घातक बल' के इस्तेमाल का प्रत्यक्ष दोषी माना गया। हसीना पिछले साल हिंसक प्रदर्शनों के बाद भारत आ गई थीं और तब से यहीं रह रही हैं।
भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि का महत्व
भारत और बांग्लादेश के बीच 2013 में द्विपक्षीय प्रत्यर्पण संधि लागू हुई थी, जिसके तहत दोनों देश एक-दूसरे से वांछित व्यक्तियों को अपराध के आधार पर सौंप सकते हैं। इस संधि के अनुसार, यदि किसी अपराध में कम से कम एक साल की जेल का प्रावधान हो, तो उसे प्रत्यर्पित किया जा सकता है। हालांकि, यह संधि राजनीतिक अपराधों के प्रत्यर्पण से इनकार करने की अनुमति भी देती है। लेकिन हत्या, जनसंहार और अपहरण जैसे गंभीर अपराधों को राजनीतिक श्रेणी से बाहर रखा गया है, जो हसीना के मामले में प्रत्यर्पण प्रक्रिया को जटिल बना सकते हैं।
हसीना का बयान
हसीना ने एक मीडिया चैनल से बातचीत में कहा कि वह 'अपने आरोपियों का सामना करने से नहीं डरतीं' और एक निष्पक्ष अंतरराष्ट्रीय अदालत में अपना पक्ष रखने के लिए तैयार हैं। उन्होंने अंतरिम सरकार को चुनौती दी कि यदि उनके पास ठोस सबूत हैं, तो वह मामला हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) में ले जाएं। उन्होंने कहा कि ढाका की मौजूदा व्यवस्था 'अराजक और हिंसक' है और यह फैसला जनता को उनके लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित करने का प्रयास है।
चुनाव से पहले का विवाद
यह निर्णय ऐसे समय आया है जब बांग्लादेश में फरवरी में चुनाव होने वाले हैं और हसीना की अवामी लीग को पहले ही चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित कर दिया गया है। हसीना ने आरोप लगाया कि मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार राजनीतिक प्रतिशोध चला रही है। उन्होंने ICT को 'कंगारू कोर्ट' बताते हुए कहा कि जुलाई-अगस्त की घटनाओं की जांच कभी निष्पक्ष नहीं रही और यह अदालत उनके विरोधियों द्वारा संचालित है।
1971 के सहयोगियों के लिए ट्रिब्यूनल
इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल मूल रूप से 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सेना के सहयोगियों पर कार्रवाई के लिए स्थापित किया गया था। हसीना ने आरोप लगाया कि मौजूदा सरकार ने इसके दायरे में फेरबदल करके पूर्व शासन के नेताओं को भी निशाने पर ले लिया है। विपक्षी दल और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन भी लंबे समय से इस अदालत की पारदर्शिता पर सवाल उठाते रहे हैं।