बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए गोविंद चंद्र प्रमाणिक की चुनावी चुनौती
बांग्लादेश में राजनीतिक बदलाव की बुनियाद
नई दिल्ली: बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदायों पर बढ़ते अत्याचारों के बीच एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना सामने आई है। बांग्लादेश जातीय हिंदू मोहजोते के महासचिव और वरिष्ठ वकील गोविंद चंद्र प्रमाणिक आगामी राष्ट्रीय चुनावों में पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के गढ़ गोपालगंज-3 से चुनावी मैदान में उतरने की योजना बना रहे हैं। यह सीट लंबे समय से शेख हसीना का गढ़ मानी जाती रही है।
स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में
प्रमाणिक 12 फरवरी को होने वाले चुनावों में स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर नामांकन दाखिल करने की इच्छा रखते हैं। गोपालगंज जिला अध्यक्ष बिजन रॉय के अनुसार, प्रमाणिक 28 दिसंबर को अपने नामांकन पत्र को आधिकारिक रूप से जमा करेंगे। उन्होंने बताया कि यह निर्णय किसी राजनीतिक दल के दबाव में नहीं, बल्कि जनता की आवाज बनने की भावना से लिया गया है।
गैर-राजनीतिक छवि का दावा
प्रमाणिक खुद को एक तटस्थ और गैर-दलीय व्यक्ति मानते हैं। उनका कहना है कि उनका किसी राजनीतिक दल से कोई संबंध नहीं रहा है और न ही वे कभी सक्रिय पार्टी राजनीति का हिस्सा रहे हैं। उनके अनुसार, पारंपरिक राजनीति में सांसद अक्सर पार्टी अनुशासन के कारण आम जनता की वास्तविक समस्याओं को मजबूती से नहीं उठा पाते। वे इस बाधा को तोड़कर सीधे लोगों की आवाज संसद तक पहुंचाना चाहते हैं।
शेख हसीना की सीट पर कड़ा मुकाबला
गोपालगंज-3 सीट पर इस बार मुकाबला बेहद दिलचस्प होने वाला है। इस सीट से बीएनपी के उम्मीदवार एसएम जिलानी, नेशनल सिटिजन पार्टी के अरिफुल दरिया, जमात-ए-इस्लामी के एमएम रेजाउल करीम समेत कई दलों के उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं। इसके अलावा, कई अन्य स्वतंत्र प्रत्याशी भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, जिससे मुकाबला बहुकोणीय बन गया है।
अल्पसंख्यकों पर बढ़ता दबाव
पिछले वर्ष छात्र आंदोलन के बाद शेख हसीना की सरकार के पतन के साथ ही देश में राजनीतिक शून्य उत्पन्न हुआ। इस स्थिति का फायदा उठाकर कट्टरपंथी संगठनों ने अपनी पकड़ मजबूत की, जिसके चलते हिंदू, ईसाई, सूफी और अहमदी मुस्लिम समुदायों पर हमलों में तेजी आई। अल्पसंख्यकों के घरों, मंदिरों और धार्मिक स्थलों को निशाना बनाया गया, जिससे देश में भय का माहौल फैल गया।
न्याय की कमी से असंतोष
ढाका के जातीय प्रेस क्लब के बाहर आयोजित अल्पसंख्यक एकता मोर्चा की सभा में नेताओं ने आरोप लगाया कि हिंसा की घटनाओं की न तो निष्पक्ष जांच हो रही है और न ही दोषियों को सजा मिल रही है। इससे अल्पसंख्यक समुदायों के बीच असुरक्षा और अविश्वास गहराता जा रहा है।
हालिया हिंसा से बढ़ी चिंता
मयमनसिंह में युवा हिंदू युवक दीपू चंद्र दास की पीट-पीटकर हत्या के बाद देशभर में विरोध प्रदर्शन तेज हो गए। अल्पसंख्यक संगठनों ने मानव श्रृंखला बनाकर अंतरिम सरकार पर हिंसा रोकने में विफल रहने का आरोप लगाया।
अंतरिम सरकार और चुनावी चुनौतियां
नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में बनी अंतरिम सरकार ने निष्पक्ष चुनाव का भरोसा दिया है, लेकिन मीडिया संस्थानों पर हमले और बढ़ती अस्थिरता ने चिंता बढ़ा दी है। सरकार ने संशोधित आतंकवाद विरोधी कानून के तहत अवामी लीग की सभी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिससे वह आगामी चुनाव में भाग लेने से अयोग्य हो गई है।
लोकतंत्र और अल्पसंख्यकों के भविष्य की परीक्षा
ऐसे माहौल में गोविंद चंद्र प्रमाणिक की उम्मीदवारी को केवल एक चुनावी कदम नहीं, बल्कि अल्पसंख्यकों की सुरक्षा, प्रतिनिधित्व और लोकतांत्रिक अधिकारों की बड़ी परीक्षा के रूप में देखा जा रहा है। यह चुनाव बांग्लादेश के राजनीतिक भविष्य की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।