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बांग्लादेश में चुनावी हिंसा: आईएसआई की साजिश का पर्दाफाश

बांग्लादेश में चुनावी हिंसा की स्थिति गंभीर होती जा रही है, जिसमें आईएसआई की भूमिका पर सवाल उठाए जा रहे हैं। हाल की घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि यह हिंसा सुनियोजित है और इसका उद्देश्य भारत की सुरक्षा को खतरे में डालना है। जानें कैसे बांग्लादेश में बढ़ती अशांति चुनावों को प्रभावित कर सकती है और इसके पीछे की साजिशों का क्या है।
 

बांग्लादेश में बढ़ती अशांति


नई दिल्ली: बांग्लादेश में पिछले एक वर्ष से चल रही अशांति अब आम चुनाव की घोषणा के बाद और बढ़ती दिखाई दे रही है। हाल की घटनाओं से स्पष्ट होता है कि यह हिंसा अचानक नहीं हुई, बल्कि इसके पीछे एक सुनियोजित योजना है।


छात्र नेता शरीफ उस्मान हादी की हत्या, ईशनिंदा के आरोप में एक हिंदू व्यक्ति की हत्या, और लगातार हो रही झड़पें इस बात का संकेत देती हैं कि देश को सांप्रदायिक तनाव में धकेलने का प्रयास किया जा रहा है।


आईएसआई की भूमिका का आरोप

हिंसा के पीछे आईएसआई की भूमिका का दावा


विशेषज्ञों और खुफिया सूत्रों के अनुसार, बांग्लादेश में चल रही उथल-पुथल में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की ढाका सेल की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जा रही है। आईएसआई का ध्यान दो प्रमुख चुनावों पर है: पहला बांग्लादेश में फरवरी 2026 में प्रस्तावित आम चुनाव और दूसरा भारत के पश्चिम बंगाल में मार्च-अप्रैल में संभावित विधानसभा चुनाव। विशेषज्ञों का मानना है कि बांग्लादेश में हिंसा फैलाकर बंगाल और पूर्वोत्तर भारत में आतंकवादियों की घुसपैठ को आसान बनाया जा सकता है।


भारत पर आईएसआई का ध्यान

भारत मुख्य निशाने पर


खुफिया एजेंसियों के अनुसार, आईएसआई का असली लक्ष्य भारत है, और वह बांग्लादेश को अपने नापाक इरादों के लिए एक माध्यम के रूप में उपयोग करना चाहती है। जानकारी के अनुसार, ढाका सेल का गठन इस वर्ष अक्टूबर में बांग्लादेश में पाकिस्तान के उच्चायोग के भीतर किया गया था। इसका उद्देश्य बांग्लादेश में आतंकवादियों और कट्टरपंथी संगठनों की नई पीढ़ी तैयार करना है।


ढाका सेल की संरचना

ढाका सेल की संरचना और रणनीति


भारतीय खुफिया एजेंसी के सूत्रों के अनुसार, ढाका सेल कोई साधारण इकाई नहीं है। इसे पाकिस्तान के ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी के प्रमुख जनरल साहिर शमशाद मिर्जा की पहल पर सक्रिय किया गया। इस सेल में पाकिस्तानी सेना के ब्रिगेडियर, कर्नल और चार मेजर रैंक के अधिकारी शामिल हैं। इसके अलावा, पाकिस्तान वायु सेना और नौसेना के अधिकारी भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। एजेंसियों का मानना है कि छात्र नेता शरीफ उस्मान हादी की हत्या के बाद भड़की हिंसा के तार इसी ढाका सेल से जुड़े हो सकते हैं। चुनाव की घोषणा होते ही उकसावे की गतिविधियां तेज कर दी गई थीं।


1971 की हार का बदला

1971 की हार का बदला लेने की कोशिश


विशेषज्ञों का मानना है कि आईएसआई बांग्लादेश में 1971 से पहले जैसी स्थिति को पुनर्स्थापित करना चाहती है। इसके लिए वह मोहम्मद यूनुस और जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनों के साथ मिलकर काम कर सकती है। मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तान को जिस अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा था, उससे वह आज तक उबर नहीं पाया है। इसी युद्ध के बाद भारत की निर्णायक भूमिका से बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र बना था।


चुनाव टालने की रणनीति

चुनाव टालने की रणनीति


सूत्रों के अनुसार, आईएसआई चाहती है कि बांग्लादेश के चुनाव में जमात-ए-इस्लामी को लाभ मिले। यदि ऐसा संभव नहीं होता है, तो चुनावों को किसी भी तरह से टालने का प्रयास किया जाएगा। हिंसा फैलाकर अस्थिरता पैदा करना इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। खुफिया एजेंसियों ने आशंका जताई है कि आने वाले दिनों में बांग्लादेश में हिंसा के और भी दौर देखने को मिल सकते हैं, जिसका असर भारत की आंतरिक सुरक्षा पर भी पड़ सकता है।