बांग्लादेश में छात्रों का सांस्कृतिक आंदोलन: संगीत और पहचान की रक्षा की मांग
बांग्लादेश में सांस्कृतिक आंदोलन का उदय
नई दिल्ली: बांग्लादेश में हाल ही में एक छोटे से नीतिगत परिवर्तन ने एक व्यापक सांस्कृतिक आंदोलन का रूप ले लिया है। देश के प्रमुख विश्वविद्यालयों में छात्र और शिक्षक अब केवल वेतन या राजनीतिक सुधार की मांग नहीं कर रहे हैं, बल्कि वे अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस के खिलाफ सड़कों पर उतरकर अपनी संस्कृति और पहचान की रक्षा के लिए आवाज उठा रहे हैं।
शिक्षकों और छात्रों के गंभीर आरोप
शेख हसीना के शासन के अंत के बाद बनी यूनुस सरकार ने प्राथमिक विद्यालयों में संगीत और शारीरिक शिक्षा के शिक्षकों की नियुक्ति को रद्द कर दिया है। सरकार का कहना है कि यह निर्णय वित्तीय और प्रशासनिक कारणों से लिया गया है, लेकिन शिक्षकों और छात्रों का आरोप है कि यह कदम कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों के दबाव में उठाया गया है, जो इन विषयों को गैर-इस्लामी मानते हैं।
ढाका विश्वविद्यालय: आंदोलन का केंद्र
ढाका विश्वविद्यालय इस आंदोलन का प्रमुख केंद्र बन गया है। सैकड़ों छात्र और शिक्षक ओपोराजेयो बांग्ला प्रतिमा के नीचे इकट्ठा होकर राष्ट्रगान और 1971 के मुक्ति संग्राम के गीत गा रहे हैं। एक बैनर पर लिखा था- 'आप स्कूलों में संगीत बंद कर सकते हैं, लेकिन बांग्लादेशियों के दिलों को नहीं'। यह भावना अब चटगाँव, राजशाही और जगन्नाथ विश्वविद्यालयों में भी फैल चुकी है, जिससे यह आंदोलन पूरे देश में फैल गया है।
'संस्कृति हमारी पहचान है'
इस आंदोलन का नेतृत्व कला, संगीत और मानविकी संकाय के छात्र कर रहे हैं। ढाका विश्वविद्यालय के प्रोफेसर इसराफिल शाहीन का कहना है कि संस्कृति कभी भी धर्म के खिलाफ नहीं होती, बल्कि यह हमारी राष्ट्रीय पहचान को आकार देती है। उनके अनुसार, 'संस्कृति के बिना शिक्षा खोखली हो जाती है'। वहीं, संगीत शिक्षक अजीज़ुर रहमान तुहिन ने कहा कि संगीत हमारी सभ्यता की जड़ है।
'विरासत के लिए खतरा'
सरकार अपने निर्णय पर अडिग है, जबकि हिफाजत-ए-इस्लाम और इस्लामी आंदोलन बांग्लादेश जैसे संगठन धार्मिक शिक्षकों का समर्थन कर रहे हैं। विरोधियों का कहना है कि सरकार ने चरमपंथी ताकतों के सामने झुकने का संकेत दिया है। जगन्नाथ विश्वविद्यालय के गायक शायन ने कहा कि यह केवल बजट या नीति का मामला नहीं है, बल्कि यह हमारी पहचान का सवाल है। धर्म को संस्कृति के खिलाफ खड़ा किया जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषक रफीक हसन का मानना है कि बांग्लादेश की नींव सांस्कृतिक क्रांति पर आधारित है। उन्होंने कहा कि अब आस्था के नाम पर उसकी विरासत को मिटाने का खतरा है।