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ब्रिटेन में गर्भपात के alarming आंकड़े: लिंग के आधार पर चयन की चिंता

ब्रिटेन में गर्भपात के alarming आंकड़े सामने आए हैं, जिनमें लिंग के आधार पर गर्भपात की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। रिपोर्ट के अनुसार, हर साल लगभग 1,10,000 गर्भपात होते हैं, जिनमें से कई केवल इसलिए किए जा रहे हैं क्योंकि भ्रूण का लिंग लड़की है। यह स्थिति न केवल ब्रिटिश भारतीय समुदाय में बल्कि समाज के अन्य हिस्सों में भी चिंता का विषय बन गई है। जानें इस मुद्दे के पीछे की सच्चाई और इसके सामाजिक प्रभाव।
 

ब्रिटेन में गर्भपात की alarming स्थिति


नई दिल्ली: ब्रिटेन को समानता और अधिकारों का प्रतीक माना जाता है, जहां हर व्यक्ति को खुलकर जीने की स्वतंत्रता है। लेकिन हाल ही में आई एक रिपोर्ट ने इस छवि को चुनौती दी है।


रिपोर्ट के अनुसार, यूके में हर साल लगभग 1,10,000 गर्भपात होते हैं। सबसे चिंताजनक बात यह है कि इनमें से कई गर्भपात केवल इसलिए किए जा रहे हैं क्योंकि भ्रूण का लिंग लड़की है। यह रिपोर्ट समाज को झकझोरने वाली है।


गर्भपात के आंकड़ों की गंभीरता

ब्रिटिश प्रेग्नेंसी एडवाइजरी सर्विस (BPAS) यूके में गर्भपात की सबसे बड़ी सेवा प्रदाता है, और देश में होने वाले आधे गर्भपात इसी के माध्यम से होते हैं। हाल की रिपोर्टों में आरोप लगाया गया है कि BPAS भ्रूण के लिंग के आधार पर गर्भपात के मुद्दे पर स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं दे रही है।


विशेष रूप से ब्रिटिश भारतीय समुदाय में यह प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है। कुछ मामलों में, जब यह पता चला कि बच्ची होने वाली है, तब गर्भपात कराया गया। यह गंभीर है क्योंकि यूके के कानून के अनुसार, केवल लिंग के आधार पर गर्भपात कानूनी नहीं हो सकता।


लिंग अनुपात की सच्चाई

स्वास्थ्य विभाग (DHSC) द्वारा 2017 से 2021 तक की गई एक स्टडी में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। भारतीय मूल के परिवारों में तीसरे या बाद के बच्चों का लिंग अनुपात 113:100 पाया गया, जबकि सामान्य अनुपात 105:100 होता है।


15,000 से अधिक जन्मों के अध्ययन के आधार पर अनुमान लगाया गया है कि इन पांच वर्षों में लगभग 400 लड़कियों को जन्म लेने से पहले ही समाप्त कर दिया गया। विशेषज्ञों का कहना है कि यह आंकड़ा गंभीर है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।


कानूनी दृष्टिकोण

ब्रिटेन के गर्भपात कानून में भ्रूण के लिंग को गर्भपात का कारण नहीं माना गया है। हालांकि, BPAS की वेबसाइट पर कहा गया है कि कानून इस मुद्दे पर स्पष्ट नहीं है, जिससे विवाद उत्पन्न हो रहा है।


आलोचकों का कहना है कि इस अस्पष्टता के कारण महिलाओं पर परिवार और समाज का दबाव बढ़ता है। रिश्तेदार बेटा चाहने वाली महिलाओं को यह विश्वास दिलाते हैं कि यह सब 'कानूनी' है।


सामाजिक चिंताएं और विरोध

Right To Life जैसे संगठनों ने BPAS पर गैर-जिम्मेदाराना रवैया अपनाने का आरोप लगाया है। सामाजिक कार्यकर्ता डेम जसविंदर संघेरा ने कहा है कि लिंग के आधार पर गर्भपात हो रहे हैं। उनके अनुसार, दहेज और पुरानी सोच आज भी बेटियों को बोझ समझती है।


उन्होंने यह भी कहा कि डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों को 'संस्कृति' या 'नस्लभेद के आरोप' के डर से आंखें बंद नहीं करनी चाहिए।


समस्या की जड़

भारत में भ्रूण लिंग जांच को रोकने के लिए सख्त कानून बनाए गए हैं, फिर भी यह समस्या पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है। अब यह सोच विदेशों में बसे कुछ परिवारों में भी दिखाई दे रही है। यह स्पष्ट है कि यह समस्या स्थान की नहीं, बल्कि मानसिकता की है।


यदि विकसित देशों में भी बेटियों को गर्भ में समाप्त किया जा रहा है, तो यह मानवता के लिए एक बड़ा सवाल है। यह केवल कानून का मुद्दा नहीं है, बल्कि उस सोच का है जो बेटियों को बोझ समझती है। जब तक समाज इस बात को नहीं समझेगा, तब तक यह सच्चाई सामने आती रहेगी।