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भारत का 'शांति विधेयक 2025': अमेरिका ने किया स्वागत, ऊर्जा सहयोग को मिलेगी नई दिशा

भारत ने हाल ही में 'शांति विधेयक 2025' पारित किया है, जिसे अमेरिका ने स्वागत किया है। यह विधेयक भारत और अमेरिका के बीच ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने और नागरिक परमाणु सहयोग को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण कदम है। इसके तहत निजी कंपनियों को परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति मिलेगी, जिससे निवेश और वैश्विक सहयोग को बढ़ावा मिलेगा। जानें इस विधेयक के प्रमुख पहलुओं और इसके प्रभावों के बारे में।
 

अमेरिका का स्वागत


नई दिल्ली: अमेरिका ने भारत द्वारा पारित 'शांति विधेयक 2025' का स्वागत किया है। इसे भारत और अमेरिका के बीच ऊर्जा सुरक्षा सहयोग को मजबूत करने और शांतिपूर्ण नागरिक परमाणु सहयोग को बढ़ावा देने वाला कदम माना गया है। भारतीय अमेरिकी दूतावास ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अमेरिका ऊर्जा क्षेत्र में भारत के साथ नवाचार, अनुसंधान और विकास के लिए तत्पर है।


भारत-अमेरिका ऊर्जा सहयोग को नई गति

अमेरिकी दूतावास ने कहा कि 'शांति विधेयक' दोनों देशों के बीच ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करेगा और नागरिक परमाणु क्षेत्र में सहयोग को नई दिशा देगा। अमेरिका ने हमेशा भारत के साथ स्वच्छ और टिकाऊ ऊर्जा साझेदारी को बढ़ावा देने का समर्थन किया है, और यह विधेयक उसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।


शांति विधेयक 2025 का उद्देश्य

'शांति विधेयक 2025' का पूरा नाम है, भारत के परिवर्तन के लिए परमाणु ऊर्जा के सतत दोहन और विकास विधेयक। यह हाल ही में संसद से पारित हुआ है, जिसका उद्देश्य भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र के कानूनी और नीतिगत ढांचे को आधुनिक बनाना है।


निजी कंपनियों के लिए नए अवसर

अब तक भारत में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का संचालन मुख्य रूप से सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों तक सीमित था। लेकिन इस विधेयक के लागू होने के बाद, निजी कंपनियों के लिए इस क्षेत्र में प्रवेश का रास्ता खुल जाएगा। विधेयक के तहत, लाइसेंस प्राप्त करने के बाद कोई भी योग्य कंपनी या संयुक्त उद्यम परमाणु रिएक्टर या ऊर्जा संयंत्र का निर्माण, स्वामित्व, संचालन और यहां तक कि बंद करने का अधिकार प्राप्त कर सकेगा।


पुराने कानूनों में बदलाव

यह विधेयक 1962 के परमाणु ऊर्जा अधिनियम और 2010 के नागरिक दायित्व अधिनियम (CLND Act) को निरस्त करने का प्रस्ताव करता है। सरकार का मानना है कि ये पुराने कानून वर्तमान तकनीकी और निवेश आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं थे, जिससे निजी निवेश और वैश्विक सहयोग में बाधाएं उत्पन्न हो रही थीं।


नियामक व्यवस्था को मजबूती

शांति विधेयक परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (AERB) को वैधानिक दर्जा प्रदान करता है, जिससे नियामक व्यवस्था और अधिक पारदर्शी और मजबूत होगी। सरकार का दावा है कि इससे सुरक्षा मानकों से कोई समझौता नहीं होगा और सभी गतिविधियां कड़े नियामक नियंत्रण में होंगी।


2047 के लक्ष्य की ओर कदम

भारत सरकार ने 2047 तक 100 गीगावाट परमाणु ऊर्जा क्षमता हासिल करने का लक्ष्य रखा है। शांति विधेयक को इसी दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। परमाणु ऊर्जा को स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला स्रोत माना जा रहा है, जिससे कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी।


कौन कर सकता है आवेदन?

विधेयक के अनुसार, केंद्र सरकार के विभाग, सरकारी कंपनियां, सरकार द्वारा स्थापित या नियंत्रित संस्थाएं, निजी कंपनियां, संयुक्त उपक्रम या केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित अन्य पात्र व्यक्ति लाइसेंस के लिए आवेदन कर सकते हैं।


वैश्विक मंच पर भारत की नई पहचान

अमेरिका की सकारात्मक प्रतिक्रिया से स्पष्ट है कि शांति विधेयक न केवल भारत की आंतरिक ऊर्जा नीति में बदलाव लाएगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर भारत को एक भरोसेमंद और आधुनिक परमाणु ऊर्जा साझेदार के रूप में स्थापित करने में भी मदद करेगा।