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भारत ने ईरान को सौंपे ऐतिहासिक दस्तावेज: सांस्कृतिक रिश्तों की नई शुरुआत

भारत ने ईरान को लगभग एक करोड़ ऐतिहासिक दस्तावेज सौंपे हैं, जो फारसी भाषा में लिखे गए हैं और 800 साल पुराने हैं। ये दस्तावेज भारत के विभिन्न पुस्तकालयों में सुरक्षित थे और अब ईरान के लिए सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण कदम हैं। डॉ. मेहदी ख्वाजापिरी की 40 साल की मेहनत से ये दस्तावेज एकत्रित किए गए हैं। जानें, इन दस्तावेजों का संरक्षण कैसे किया गया और ये ईरान के इतिहास के लिए क्यों महत्वपूर्ण हैं।
 

भारत और ईरान के बीच ऐतिहासिक दस्तावेजों का आदान-प्रदान


भारत ने ईरान को लगभग एक करोड़ ऐतिहासिक दस्तावेज सौंपे हैं, जो फारसी भाषा में लिखे गए हैं। ये दस्तावेज लगभग 800 साल पुराने हैं और लंबे समय से भारत के विभिन्न पुस्तकालयों और अभिलेखागारों में सुरक्षित रखे गए थे। इनमें शासन, समाज, व्यापार और संस्कृति से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियां शामिल हैं। इतिहासकार इसे दोनों देशों के बीच संबंधों की महत्वपूर्ण कड़ी मानते हैं। यह कदम सांस्कृतिक सहयोग के तहत उठाया गया है।


फारसी भाषा का भारत में ऐतिहासिक महत्व

भारत में एक समय फारसी भाषा का विशेष महत्व था। कई सरकारी कार्य और ऐतिहासिक दस्तावेज फारसी में लिखे जाते थे। मुगल काल और उससे पहले के समय में फारसी दरबार की भाषा रही। यही कारण है कि भारत में फारसी दस्तावेजों का एक बड़ा संग्रह मौजूद है, जो उस समय की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति को दर्शाता है। यह विरासत अब ईरान के लिए भी महत्वपूर्ण बन गई है।


डॉ. मेहदी ख्वाजापिरी की 40 साल की मेहनत

इन दस्तावेजों को इकट्ठा करने में डॉ. मेहदी ख्वाजापिरी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने लगभग 40 वर्षों तक भारत के विभिन्न हिस्सों की यात्रा की और उन स्थानों तक पहुंचे जहां आम लोगों का जाना मना था। मंदिरों, निजी संग्रहों और पुराने अभिलेखागारों से दस्तावेजों को एकत्रित किया गया। यह कार्य आसान नहीं था, लेकिन उनकी मेहनत से यह अनोखा संग्रह तैयार हो सका।


दस्तावेजों का संरक्षण

इन दस्तावेजों को नूर इंटरनेशनल माइक्रोफिल्म सेंटर में सुरक्षित किया गया है। यहां इन्हें माइक्रोफिल्म और डिजिटल रूप में परिवर्तित किया गया है ताकि समय के साथ ये नष्ट न हों। पहले ये दस्तावेज नमी, कीड़ों और मौसम के प्रभाव से प्रभावित हो रहे थे। अब डिजिटल रूप में इन्हें लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है, जिससे शोधकर्ताओं को भी आसानी होगी।


डिजिटल रूप का महत्व

लगभग एक लाख पांडुलिपियां अब केवल डिजिटल माइक्रोफिल्म में ही उपलब्ध हैं। मूल दस्तावेज बहुत नाजुक हो चुके थे। डिजिटल तकनीक ने इन्हें सुरक्षित रखने में मदद की है। अब इन्हें बिना नुकसान पहुंचाए पढ़ा और अध्ययन किया जा सकता है, जो आधुनिक इतिहास लेखन के लिए महत्वपूर्ण है। इससे आने वाली पीढ़ियों को भी इनका लाभ मिलेगा।


ईरान के लिए दस्तावेजों का महत्व

ईरान के इतिहास के कई हिस्से आज भी अधूरे हैं। इन फारसी दस्तावेजों से उन खाली स्थानों को भरने में मदद मिलेगी। इनमें ईरान और भारत के पुराने राजनीतिक और व्यापारिक संबंधों की झलक मिलती है। यह संग्रह दोनों सभ्यताओं के आपसी संपर्क को समझने में सहायक होगा और ईरान के इतिहासकारों के लिए यह किसी खजाने से कम नहीं है।


भारत-ईरान संबंधों का नया अध्याय

यह कदम केवल दस्तावेजों के आदान-प्रदान तक सीमित नहीं है। यह भारत और ईरान के बीच सांस्कृतिक संबंधों को और मजबूत करता है। इतिहास के माध्यम से दोनों देश एक-दूसरे को बेहतर समझ सकते हैं। यह सहयोग दर्शाता है कि कूटनीति केवल राजनीति तक सीमित नहीं होती, बल्कि संस्कृति और विरासत भी देशों को जोड़ने का कार्य करती है। यही इस पहल का सबसे बड़ा संदेश है।