भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन: नई साझेदारियों की दिशा में महत्वपूर्ण कदम
तेईसवीं भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन में दोनों देशों ने कई महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, जो उनकी विशेष रणनीतिक साझेदारी को अगले दशक के लिए मजबूत करेंगे। इस सम्मेलन में आर्थिक सहयोग, रक्षा, ऊर्जा, और सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की गई हैं। भारत ने अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखते हुए वैश्विक संकटों में प्रभावी नेतृत्व की भूमिका निभाने का संकल्प लिया है। जानें इस सम्मेलन के प्रमुख बिंदुओं और भविष्य की संभावनाओं के बारे में।
Dec 5, 2025, 20:57 IST
भारत और रूस के बीच नई समझौतों की श्रृंखला
तेईसवीं भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन में दोनों देशों ने अपनी विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी को अगले दशक की आवश्यकताओं के अनुसार विस्तारित करने के लिए कई महत्वपूर्ण समझौतों और कार्यक्रमों को अंतिम रूप दिया है। दोनों नेताओं ने यह स्पष्ट किया कि द्विपक्षीय संबंध वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच भी विश्वास और आपसी सम्मान पर आधारित हैं।
समझौतों की विस्तृत श्रृंखला
इस शिखर सम्मेलन के दौरान पंद्रह से अधिक समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए, जिनमें श्रम गतिशीलता, अनियमित प्रवासन पर नियंत्रण, स्वास्थ्य सहयोग, खाद्य सुरक्षा, ध्रुवीय जल क्षेत्रों में जहाज़ी विशेषज्ञ प्रशिक्षण, पोत परिवहन, खाद उर्वरक आपूर्ति, सीमा शुल्क सहयोग, डाक सेवाओं का आदान-प्रदान और व्यापक मीडिया साझेदारी शामिल हैं। विज्ञान, शिक्षा और मीडिया में भी बहुआयामी सहयोग को नई गति देने पर सहमति बनी।
आर्थिक सहयोग और दीर्घकालिक साझेदारी
दोनों पक्षों ने 2030 तक आर्थिक सहयोग के रणनीतिक क्षेत्रों का कार्यक्रम अपनाया, जिसमें व्यापार को संतुलित और सतत बढ़ाने, भुगतान तंत्रों में राष्ट्रीय मुद्राओं के उपयोग को बढ़ावा देने और दोनों देशों की वित्तीय संदेश प्रणाली और डिजिटल मुद्रा प्लेटफ़ॉर्म को इंटरऑपरेबल बनाने पर जोर दिया गया। ऊर्जा, खनिज संसाधन, तेल गैस, परमाणु ऊर्जा और स्पेस टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में दीर्घकालिक साझेदारी को मजबूत करने का निर्णय भी लिया गया है।
परिवहन गलियारों का विकास
इसके अलावा, आईएनएसटीसी, चेन्नई-व्लादिवोस्तोक समुद्री मार्ग और उत्तरी समुद्री मार्ग जैसे परिवहन गलियारों के विकास के लिए व्यापक सहयोग पर जोर दिया गया, जिससे एशिया-यूरोप आपूर्ति श्रृंखला में भारत की भूमिका और मजबूत होने की उम्मीद है। आर्कटिक क्षेत्र में संयुक्त परियोजनाओं को तेज़ करने, रूस के फ़ार ईस्ट में निवेश बढ़ाने और भारतीय कार्यबल की भागीदारी की नई संभावनाओं पर भी चर्चा हुई।
रक्षा सहयोग और सांस्कृतिक संबंध
रक्षा सहयोग में, दोनों देशों ने को-डेवलपमेंट और को-प्रोडक्शन पर आधारित आत्मनिर्भरता वाले मॉडल पर जोर दिया। यह सुनिश्चित करने की दिशा में सहमति बनी कि रूस-निर्मित प्रणालियों के स्पेयर पार्ट्स और घटकों का निर्माण भारत में किया जा सके। इसके अलावा, सांस्कृतिक और पर्यटन संबंधों को मजबूत करने के लिए रूस के नागरिकों के लिए तीस दिन का ई-टूरिस्ट वीज़ा निशुल्क देने की घोषणा की गई है।
आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता
दोनों देशों ने आतंकवाद के खिलाफ शून्य सहनशीलता की आवश्यकता को दोहराया और बहुपक्षीय मंचों जैसे जी20, ब्रिक्स, एससीओ और संयुक्त राष्ट्र में घनिष्ठ समन्वय जारी रखने पर सहमति जताई है।
भारत की रणनीतिक स्वायत्तता
इस शिखर सम्मेलन से यह स्पष्ट होता है कि भारत ऐसे समय में है जब विश्व महाशक्तियाँ दो ध्रुवों में बंटी हुई हैं। भारत अपनी विदेश नीति को किसी भी दबाव के आगे झुकने नहीं दे रहा है। रूस और पश्चिम के बीच टकराव तथा अमेरिका और चीन की प्रतिद्वंद्विता के बीच भारत ने जो रणनीतिक स्वायत्तता दिखाई है, उसने उसे वैश्विक संकटों में विश्वसनीय और प्रभावशाली नेतृत्व की भूमिका प्रदान की है।
भविष्य की भू-राजनीति
भारत अपने मार्गों को खुद गढ़ रहा है, चाहे वह INSTC हो, नॉर्दर्न सी रूट हो या चेन्नई-व्लादिवोस्तोक कॉरिडोर। ये सभी पहलें एशिया और यूरोप आपूर्ति श्रृंखला में भारत को एक निर्णायक नोड के रूप में उभारती हैं और चीन की BRI जैसी परियोजनाओं को अप्रत्यक्ष चुनौती देती हैं।
रक्षा और ऊर्जा में स्थिरता
रक्षा और ऊर्जा जैसे भारत की दीर्घकालिक सुरक्षा के स्तंभ इस साझेदारी से स्थिर होते हैं। पश्चिमी प्रतिबंधों और भू-राजनीतिक अस्थिरताओं के दौर में रूस से ऊर्जा और रक्षा आपूर्ति की निरंतरता भारत के लिए रणनीतिक बीमा की तरह है।
भारत की मध्यस्थता की भूमिका
यूक्रेन संघर्ष पर भारत की भूमिका यथार्थवादी है। न तो किसी गुट के साथ खड़ा होना और न ही नैतिकता के झूठे दंभ में फँसकर राष्ट्रीय हितों से समझौता करना। यही संतुलन भारत को भविष्य में एक संभावित मध्यस्थ शक्ति के रूप में स्थापित करता है।
भारत-रूस संबंधों का भविष्य
इस शिखर सम्मेलन से यह स्पष्ट होता है कि भारत-रूस संबंध केवल इतिहास की विरासत नहीं, बल्कि भविष्य की भू-राजनीति का खाका हैं। पश्चिम जहाँ रूस को अलग-थलग करने में व्यस्त है, वहीं भारत यह संदेश दे रहा है कि उसकी विदेश नीति किसी प्रलोभन या दबाव की मोहताज़ नहीं है, बल्कि वह केवल राष्ट्रीय हित के प्रति उत्तरदायी है।