रूस और अमेरिका के बीच पाकिस्तान के परमाणु हथियारों पर गंभीर चर्चा: दस्तावेजों से खुलासा
पाकिस्तान के परमाणु हथियारों पर पुतिन की चेतावनी
हाल ही में जारी गोपनीय दस्तावेजों ने एक महत्वपूर्ण मुद्दे को फिर से उजागर किया है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 2001 में अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश को पाकिस्तान के परमाणु हथियारों के बारे में गंभीर चेतावनी दी थी। ये दस्तावेज अमेरिकी नेशनल सिक्योरिटी आर्काइव द्वारा सार्वजनिक किए गए हैं, जो 2001 से 2008 के बीच दोनों नेताओं के बीच हुई बातचीत के प्रतिलेख हैं.
स्लोवेनिया में पुतिन की चिंताएं
16 जून 2001 को स्लोवेनिया में दोनों नेताओं की पहली व्यक्तिगत मुलाकात हुई। इस दौरान पुतिन ने बुश से स्पष्ट रूप से कहा कि उन्हें पाकिस्तान की स्थिति को लेकर चिंता है। उस समय पाकिस्तान में जनरल परवेज मुशर्रफ का सैन्य शासन था। पुतिन ने इसे "परमाणु हथियारों वाली सैन्य सरकार" करार दिया और सवाल उठाया कि एक गैर-लोकतांत्रिक देश के पास इतने खतरनाक हथियार होने पर पश्चिमी देशों की चुप्पी क्यों है।
उन्होंने इस मुद्दे पर खुलकर चर्चा करने की आवश्यकता पर जोर दिया। ये टिप्पणियां दर्शाती हैं कि पुतिन पाकिस्तान की राजनीतिक अस्थिरता और उसके परमाणु भंडार से उत्पन्न खतरों को लेकर गंभीर थे.
पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम पर साझा चिंताएं
2001 से 2008 के बीच हुई बातचीत में पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम बार-बार चर्चा का विषय बना। दोनों नेता इसे परमाणु प्रसार के लिए एक बड़ा खतरा मानते थे। बाद की बैठकों में ईरान के परमाणु कार्यक्रम में पाकिस्तानी सामग्री मिलने की बात भी सामने आई, जिससे उनकी चिंता और बढ़ गई।
ये दस्तावेज यह दर्शाते हैं कि सार्वजनिक सहयोग के बावजूद, निजी बातचीत में दोनों नेताओं ने पाकिस्तान के हथियारों की सुरक्षा पर संदेह व्यक्त किया।
भारत की चिंताएं और अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य
पुतिन की चिंताएं भारत की उन चिंताओं से मेल खाती हैं, जो भारत वर्षों से पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर व्यक्त करता रहा है। भारत हमेशा से यह कहता आया है कि पाकिस्तान की राजनीतिक स्थिति और उसके हथियार क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं।
इन दस्तावेजों से यह स्पष्ट होता है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ऐसी ही चिंताएं थीं। ये पुरानी बातचीत आज भी प्रासंगिक है। परमाणु हथियारों का गैर-जिम्मेदाराना प्रसार विश्व शांति के लिए एक बड़ा खतरा बना हुआ है। ऐसे में सभी देशों को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए.