रूस-यूक्रेन संघर्ष: पश्चिमी देशों का नया समुद्री प्रतिबंध प्रस्ताव
नई दिल्ली में महत्वपूर्ण निर्णय
नई दिल्ली: रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के दौरान, पश्चिमी देशों ने रूस की तेल आय को सीमित करने के लिए कई कदम उठाए हैं। हाल ही में समुद्री सेवाओं पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की योजना को सबसे बड़ा कदम माना जा रहा है.
समुद्री सेवाओं पर प्रतिबंध की योजना
यूरोपीय संघ और G7 देश अब एक ऐसी योजना पर विचार कर रहे हैं, जिसके तहत रूसी तेल के वैश्विक परिवहन के लिए जहाज, बीमा और लॉजिस्टिक सहायता लगभग समाप्त हो जाएगी। यह निर्णय रूस की अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव डालेगा और अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार में हलचल पैदा कर सकता है.
समुद्री प्रतिबंध का प्रभाव
रिपोर्टों के अनुसार, G7 और यूरोपीय संघ रूसी कच्चे तेल की शिपिंग और बीमा सेवाओं पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रहे हैं। वर्तमान में कुछ पश्चिमी जहाज और बीमा कंपनियां रूस की सप्लाई में शामिल हैं, लेकिन नया प्रस्ताव इस मार्ग को पूरी तरह से बंद कर देगा, जिससे रूसी तेल व्यापार पर गंभीर असर पड़ सकता है.
प्राइस कैप व्यवस्था पर असर
नए प्रतिबंधों के लागू होने के बाद मौजूदा प्राइस कैप व्यवस्था भी अप्रासंगिक हो जाएगी। रूस अभी भी बड़ी मात्रा में पश्चिमी स्वामित्व वाले टैंकरों के माध्यम से भारत और चीन को तेल भेजता है। यदि ये सेवाएं रुक जाती हैं, तो रूस को अपने पुराने 'शैडो फ्लीट' पर निर्भर रहना पड़ेगा.
EU के नए प्रस्ताव का महत्व
सूत्रों के अनुसार, यह प्रस्ताव यूरोपीय संघ के आगामी प्रतिबंध पैकेज में शामिल किया जा सकता है, जिसकी घोषणा 2026 की शुरुआत में होने की संभावना है। EU यह सुनिश्चित करना चाहता है कि किसी भी अंतिम निर्णय से पहले G7 देशों के साथ सहमति बन जाए. यह रूस के खिलाफ अब तक के सबसे कठोर कदमों में से एक होगा.
अंतिम निर्णय पर ट्रंप प्रशासन का प्रभाव
योजना पर चर्चा तेज हो रही है, लेकिन अंतिम निर्णय अमेरिका की नई ट्रंप सरकार के रुख पर निर्भर करेगा। ट्रंप प्रशासन पहले ही प्राइस कैप घटाने के प्रस्ताव का समर्थन करने से पीछे हट चुका है. विश्लेषकों का मानना है कि यह भी देखना होगा कि ट्रंप की मध्यस्थता वाली शांति प्रयासों पर इस कदम का क्या प्रभाव पड़ेगा.
रूस की वैकल्पिक रणनीतियाँ
पश्चिमी प्रतिबंधों से बचने के लिए, रूस ने बड़ी संख्या में निजी, अनट्रेस्ड टैंकरों का उपयोग बढ़ाया है, जिनमें से कई बीमा और सुरक्षा मानकों के बिना चलते हैं। फिर भी, G7 देशों का कहना है कि उनका उद्देश्य तेल बाजार की स्थिरता बनाए रखते हुए रूस की युद्ध फंडिंग को कम करना है. यदि पूर्ण समुद्री प्रतिबंध लागू होता है, तो रूस को निर्यात घटाने या अपने शैडो फ्लीट का विस्तार करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है.