रूस से ईरान तक की रहस्यमय ट्रेन यात्रा: क्या है इसके पीछे का सच?
रूस की सीक्रेट ट्रेन यात्रा
12 दिन पहले, रूस की राजधानी मॉस्को से 900 किमी दूर नॉर्दर्न रेलवे पॉलीगॉन पर गतिविधियाँ तेज हो गईं। आधी रात को स्टेशन को पूरी तरह से बंद कर दिया गया और एक कंटेनर ट्रेन, जिसमें 62 डिब्बे थे, को रूसी सेना की एक गुप्त टीम द्वारा लोड किया गया। इसके बाद, रूस के सुखोई फाइटर जेट्स की एक पूरी स्क्वाड्रन ने इसे गार्ड किया। दिन निकलने से पहले, इस ट्रेन को बेहद चतुराई से और गुप्त तरीके से रवाना किया गया। हर एक अपडेट सीधे पुतिन तक पहुंचाई गई। इस बीच, रूस की ओर से यूक्रेन पर हमले जारी हैं, लेकिन पुतिन का ध्यान इस महत्वपूर्ण मिशन पर केंद्रित है।
ट्रेन का सफर और संभावित हथियारों का सवाल
नॉर्दर्न रेलवे पॉलीगॉन से निकलकर, ट्रेन कजाकिस्तान बॉर्डर के पास ओजिंकी में पहली बार रुकती है। इसके बाद, यह कजाकिस्तान के ऊजन शहर में प्रवेश करती है। बोलाशाक होते हुए, यह तुर्कमेनिस्तान के बरिकेत और फिर एट्रिक तक पहुंचती है, और इसका अंतिम पड़ाव ईरान का अपरिन है। इसे व्यवसायिक सामान के लिए बताया गया है, लेकिन इसकी व्यवस्थाओं को देखकर कई सवाल उठ रहे हैं। क्या रूस ने ईरान को कोई महत्वपूर्ण हथियार दिया है? क्या ईरान फिर से रूस की मदद से न्यूक्लियर हथियार विकसित करने की योजना बना रहा है?
भारत के लिए आईएएसटीसी का महत्व
भारत के दृष्टिकोण से, यह रेल मार्ग अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि आईएएसटीसी (इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर) समुद्री मार्गों की तुलना में एक अधिक किफायती विकल्प प्रदान करता है। इससे समय और धन दोनों की बचत होगी। कहा जा रहा है कि इससे सामान की ढुलाई की लागत में 30 से 55% तक की कमी आएगी, जबकि परिवहन समय में लगभग 40% की कमी आने की संभावना है।
आईएएसटीसी का इतिहास और भविष्य
आईएएसटीसी एक मल्टीमॉडल रूट है, जिसे भारत, रूस और ईरान ने 2000 में स्थापित किया था, जिसका उद्देश्य भारतीय महासागर और पारसी गल्फ को ईरान और रूस के माध्यम से उत्तरी यूरोप से जोड़ना था। यह कहा जा रहा है कि आईएएसटीसी भारत को अमेरिकी प्रतिबंधों से आंशिक रूप से बचाने में मदद कर सकता है, खासकर चाबहार जैसे प्रोजेक्ट्स के माध्यम से वैकल्पिक व्यापार के अवसर प्रदान करके। लेकिन इस ट्रेन के ईरान पहुंचने के तरीके पर चर्चा जारी है।