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अंतिम संस्कार में दामाद की भूमिका: गरुण पुराण की दृष्टि

इस लेख में हम गरुण पुराण के अनुसार अंतिम संस्कार में दामाद की भूमिका पर चर्चा करेंगे। जानें क्यों दामाद को इस प्रक्रिया में शामिल नहीं किया जाता है और इसके पीछे के धार्मिक और सांस्कृतिक कारण क्या हैं। यह जानकारी आपको अंतिम संस्कार की परंपराओं को समझने में मदद करेगी।
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अंतिम संस्कार में दामाद की भूमिका: गरुण पुराण की दृष्टि

गरुण पुराण का संदेश


मृत्यु का सत्य
मृत्यु जीवन का एक अनिवार्य सत्य है। हर जीव को एक दिन इस संसार को छोड़ना पड़ता है, लेकिन आत्मा अमर मानी जाती है। गरुण पुराण में मृत्यु और अंतिम संस्कार की प्रक्रिया का विस्तृत वर्णन किया गया है। हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार का विशेष महत्व है।


अंतिम संस्कार के नियम

अंतिम संस्कार की प्रक्रिया हमेशा नियमों के अनुसार होती है। गरुण पुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथों में यह स्पष्ट किया गया है कि अंतिम संस्कार का अधिकार सबसे पहले पुत्र का होता है। हालांकि, वर्तमान समय में बेटियां और दामाद भी इस प्रक्रिया में शामिल हो रहे हैं।


पुत्र का प्राथमिक अधिकार


गरुण पुराण के अनुसार, मृतक के अंतिम संस्कार का प्राथमिक अधिकार उसके पुत्र का होता है। दामाद को अंतिम संस्कार करने से रोकने का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है, लेकिन परंपराओं के अनुसार, दामाद को इस कार्य से वंचित रखा जाता है।


दामाद की स्थिति

दामाद का अधिकार


दामाद केवल बेटी का पति होता है, इसलिए उसके पास पुत्र के कर्तव्यों का अधिकार नहीं होता। कई दामाद अपनी पत्नी के परिवार से खुद को अलग समझते हैं। कन्यादान के बाद, बेटी का संबंध अपने परिवार से समाप्त हो जाता है।


अंतिम संस्कार में भागीदारी


कुछ क्षेत्रों में दामाद को अंतिम संस्कार में शामिल नहीं किया जाता है, क्योंकि उसे 'जम' या यमदूत के रूप में देखा जाता है। हालांकि, कुछ समुदायों में यदि पुत्र या पोता उपलब्ध नहीं हैं, तो दामाद को अंतिम संस्कार करने की अनुमति दी जाती है।