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अयोध्या में राम मंदिर का ध्वजारोहण: आस्था और संस्कृति का अद्वितीय क्षण

अयोध्या में भगवान राम की जन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर के शिखर पर धर्म ध्वजा का ध्वजारोहण होने जा रहा है। यह क्षण न केवल रामभक्तों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सनातन परंपरा और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक भी है। इस ध्वजा पर अंकित सूर्यदेव, ॐ और कोविदार वृक्ष के प्रतीक, अयोध्या की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को दर्शाते हैं। जानिए इस अद्वितीय क्षण का महत्व और इसके पीछे की गहरी आस्था।
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अयोध्या में राम मंदिर का ध्वजारोहण: आस्था और संस्कृति का अद्वितीय क्षण

अयोध्या में भक्ति का माहौल


अयोध्याः भगवान राम की पवित्र जन्मभूमि अयोध्या इस समय श्रद्धा और भक्ति के अद्भुत माहौल में डूबी हुई है। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र में मंत्रोच्चारण, हवन और जयश्रीराम के उद्घोष से वातावरण गूंज रहा है। कई दिनों से चल रही विशेष पूजा और वैदिक अनुष्ठानों के बाद वह क्षण आ गया है जिसका करोड़ों रामभक्त बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भव्य राम मंदिर के शिखर पर धर्म ध्वजा फहराएंगे—यह एक ऐसा क्षण होगा जो इतिहास में अमिट रहेगा।


धर्म ध्वज का महत्व

राम मंदिर के 161 फीट ऊँचे शिखर पर फहराने वाली केसरिया धर्म ध्वजा विशेष रूप से तैयार की गई है। इसका रंग त्याग, वीरता और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक है। इस ध्वज पर तीन दिव्य चिन्ह अंकित हैं: ॐ, सूर्यदेव और कोविदार वृक्ष। ये सभी प्रतीक न केवल सनातन संस्कृति की आत्मा हैं, बल्कि रामायण काल की परंपराओं से भी जुड़े हुए हैं।


सूर्यदेव: ऊर्जा का स्रोत

धर्म ध्वजा पर अंकित सूर्य का प्रतीक भगवान राम के सूर्यवंशीय होने का संकेत है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, राम का जन्म सूर्यवंश में हुआ, जिसकी शुरुआत सूर्यदेव के पुत्र वैवस्वत मनु से मानी जाती है। कहा जाता है कि जब रामलला का जन्म हुआ, तब सूर्य का रथ थम गया था और एक महीने तक रात नहीं हुई।


रामायण में उल्लेख है कि लंका विजय से पहले भगवान राम ने महर्षि अगस्त्य की सलाह पर सूर्यदेव की उपासना की, जिससे उन्हें नई शक्ति और आत्मबल प्राप्त हुआ। इसलिए, इस ध्वज पर सूर्य का प्रतीक विशेष आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करता है।


ॐ: ब्रह्मांड की ध्वनि

धर्म ध्वजा पर अंकित दूसरा पवित्र चिन्ह 'ॐ' सनातन दर्शन का मूल आधार है। इसे ब्रह्मांड की पहली ध्वनि माना गया है, जिसमें समस्त सृष्टि का सार समाहित है। हर देवी-देवता के मंत्र की शुरुआत इसी ध्वनि से होती है, क्योंकि यह मन, शरीर और चेतना को दिव्यता से जोड़ने वाला पुल है।


ॐ का उच्चारण वातावरण को पवित्र बनाता है और साधक को ईश्वर से जोड़ता है। यही कारण है कि इसे धर्म ध्वजा पर स्थान दिया गया है ताकि मंदिर परिसर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बना रहे।


कोविदार वृक्ष: परंपरा का प्रतीक

ध्वजा पर बना कोविदार वृक्ष अयोध्या की प्राचीन पहचान से जुड़ा हुआ है। पौराणिक ग्रंथों में इसे त्रेतायुग का राजवृक्ष बताया गया है, जो अयोध्या के ध्वज पर अंकित किया जाता था। रामायण में वर्णन मिलता है कि जब भरत भगवान राम को वन से वापस लाने गए, तो सेना के ध्वज पर बने कोविदार वृक्ष को देख लक्ष्मण तुरंत समझ गए कि यह अयोध्या की सेना है।


मान्यता है कि यह वृक्ष पौराणिक काल में कश्यप ऋषि द्वारा पारिजात और मंदार को मिलाकर बनाया गया पहला 'हाइब्रिड वृक्ष' था। इसके बैंगनी फूल अत्यंत सुंदर माने जाते हैं और आयुर्वेद में इसके औषधीय गुणों का भी वर्णन मिलता है।


आस्था का अद्वितीय क्षण

धर्म ध्वजारोहण केवल एक रस्म नहीं है, बल्कि अयोध्या में रामराज्य की मूल भावना की पुनर्स्थापना का प्रतीक है। यह सनातन परंपरा, सांस्कृतिक गौरव और आध्यात्मिक उन्नति का संदेश पूरी दुनिया तक पहुंचाएगा। जब केसरिया ध्वज मंदिर के शिखर पर लहराएगा, तो यह न केवल रामभक्तों के हृदय को उत्साह से भर देगा, बल्कि अयोध्या की दिव्यता भी एक बार फिर साक्षात हो उठेगी।