कंस वध उत्सव: धर्म की विजय का प्रतीक
कंस वध उत्सव, जो धर्म और अधर्म के संघर्ष का प्रतीक है, हर साल कार्तिक माह की दशमी तिथि को मनाया जाता है। यह उत्सव भगवान श्रीकृष्ण के अवतार और कंस के वध की कहानी को दर्शाता है। जानें इस पौराणिक कथा का महत्व और कैसे यह उत्सव दीपावली के बाद मनाया जाता है। इस लेख में हम कंस वध की पृष्ठभूमि, उत्सव का समय, और इसके धार्मिक महत्व पर चर्चा करेंगे।
| Nov 1, 2025, 10:28 IST
कंस वध की पृष्ठभूमि
द्वापर युग में कंस का वध केवल एक साधारण घटना नहीं थी, बल्कि यह धर्म और अधर्म के बीच के संघर्ष का प्रतीक था। जब भगवान श्रीहरि विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया, तो उनका मुख्य उद्देश्य पृथ्वी को अत्याचारों से मुक्त करना और धर्म की पुनर्स्थापना करना था। मथुरा का दुष्ट राजा कंस अपने पिता उग्रसेन को बंदी बनाकर शासन कर रहा था और देवताओं को भी भयभीत कर चुका था, जिससे लोग त्राहिमाम कर रहे थे।
कंस वध उत्सव का समय
हिंदू पंचांग के अनुसार, कंस वध उत्सव कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। यह दिन दीपावली के लगभग 10 दिन बाद आता है, इसलिए कई स्थानों पर दीपावली से जुड़े अनुष्ठान दशमी तक जारी रहते हैं। इस वर्ष, द्रिक पंचांग के अनुसार, कंस वध का पर्व 01 नवंबर 2025 को मनाया जाएगा।
कथा का सार
जब मथुरा के राजा कंस की बहन देवकी का विवाह वसुदेव से हुआ, तब आकाशवाणी हुई कि 'हे कंस, तुम्हारी बहन देवकी की आठवीं संतान तुम्हारी मृत्यु का कारण बनेगी।' इस सुनकर कंस ने देवकी और वसुदेव को कारागार में डाल दिया और देवकी की सभी संतानों को जन्म लेते ही मार दिया। लेकिन आठवीं संतान श्रीकृष्ण बच गए और वसुदेव ने उन्हें गोकुल पहुंचा दिया, जहां उनका पालन नंदबाबा और मां यशोदा ने किया।
श्रीकृष्ण का मथुरा आगमन
श्रीकृष्ण के पराक्रम की कहानियां चारों ओर फैल गईं। अंततः कंस ने श्रीकृष्ण को मथुरा बुलाने का षडयंत्र रचा ताकि उन्हें कुश्ती के बहाने मार सके। लेकिन श्रीकृष्ण, जो भगवान विष्णु के अवतार थे, को कोई नहीं मार सकता था। बुलावे पर श्रीकृष्ण और बलराम मथुरा पहुंचे और कंस के हाथी कुवलयापीड को मार दिया। इसके बाद उन्होंने चाणूर और मुष्टिक जैसे पहलवानों को भी पराजित किया।
कंस का वध
जब कंस ने अपने महाबलियों को पराजित होते देखा, तो वह स्वयं अखाड़े में उतरा। श्रीकृष्ण ने बिना समय गंवाए कंस का वध कर दिया। इसके बाद, श्रीकृष्ण ने अपने नाना उग्रसेन को फिर से सिंहासन पर बिठाया और प्रजा को भयमुक्त जीवन जीने का आश्वासन दिया।
कंस वध का महत्व
कंस वध केवल एक युद्ध नहीं, बल्कि अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है। यह कथा हमें सिखाती है कि जब भी धर्म संकट में होता है, तब श्रीकृष्ण हमारे भीतर प्रकट होते हैं। कंस वध के अगले दिन देव उत्थान एकादशी का पर्व मनाया जाता है।
