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कूर्म द्वादशी: भगवान विष्णु के अवतार का महत्व और पूजा विधि

कूर्म द्वादशी का पर्व हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है, जब भगवान विष्णु ने कछुए के रूप में अवतार लिया। इस दिन व्रत करने से पापों का नाश होता है और इच्छित फल की प्राप्ति होती है। जानें इस दिन की पूजा विधि और इसके पीछे की पौराणिक कथा, जो इसे और भी महत्वपूर्ण बनाती है।
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कूर्म द्वादशी: भगवान विष्णु के अवतार का महत्व और पूजा विधि

कूर्म द्वादशी का महत्व

आज कूर्म द्वादशी का पर्व मनाया जा रहा है, जो हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन भगवान विष्णु ने कछुए के रूप में अवतार लिया था। कूर्म द्वादशी का व्रत करने से व्यक्ति के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं और इच्छित फल की प्राप्ति होती है। आइए, जानते हैं इस दिन की पूजा विधि। 


कूर्म द्वादशी के बारे में जानकारी

कूर्म द्वादशी पौष मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि होती है। संस्कृत में 'कूर्म' का अर्थ कछुआ है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन के लिए कछुए का रूप धारण किया था, जो उनका दूसरा अवतार माना जाता है। जब मंदराचल पर्वत समुद्र में डूबने लगा, तब भगवान ने कच्छप रूप धारण कर पर्वत को अपनी पीठ पर थाम लिया। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। कूर्म द्वादशी पर घर में कछुआ लाना भी महत्वपूर्ण माना जाता है। पंडितों के अनुसार, चांदी और अष्टधातु का कछुआ घर में रखना शुभ होता है। काले रंग का कछुआ विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है। 


कूर्म द्वादशी की पूजा विधि

कूर्म द्वादशी के दिन, सुबह स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें। फिर साफ वस्त्र पहनकर घर के मंदिर की सफाई करें। मंदिर में साफ चौकी पर कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु के कूर्म अवतार की प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद सिंदूर, लाल फूल, धूप और दीप अर्पित करें। इस दिन कुर्म स्तोत्र का पाठ करना आवश्यक है। अंत में आरती करके भोग लगाएं और सभी में वितरित करें। व्रति को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना चाहिए। पूजा स्थल पर भगवान विष्णु की छोटी मूर्ति और कुछए की प्रतिमा रखकर फल, दीपक और धूप चढ़ाएं। 'विष्णु सहस्त्रनाम' और 'नारायण स्तोत्र' का पाठ करना भी शुभ माना जाता है। पूजा के अंत में भगवान को भोग अर्पित करें, जिसमें फल, मिठाई और तुलसी के पत्ते शामिल हों।


कूर्म द्वादशी का विशेष महत्व

कूर्म द्वादशी का व्रत शास्त्रों में विशेष महत्व रखता है। इसे भगवान विष्णु के दूसरे अवतार के रूप में पूजा जाता है। इस दिन का व्रत करने से भक्तों के कष्ट दूर होते हैं और उन्हें मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।


कूर्म द्वादशी का पौराणिक महत्व

पौराणिक कथा के अनुसार, दैत्यों के राजा बलि ने देवताओं को हराकर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था। देवताओं की शक्तियां समाप्त हो गईं। तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास सहायता के लिए पहुंचे। भगवान ने उन्हें समुद्र मंथन करने का सुझाव दिया ताकि अमृत प्राप्त किया जा सके। देवताओं ने दैत्यों को समुद्र मंथन के लिए मनाने का प्रयास किया। अंततः दैत्यों ने देवताओं के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने का निर्णय लिया। मंथन के दौरान, जब मंदराचल पर्वत समुद्र में डूबने लगा, तब भगवान विष्णु ने कछुए का रूप धारण कर पर्वत को थाम लिया। इस प्रकार समुद्र मंथन संभव हुआ और अमृत प्राप्त हुआ, जिससे देवताओं को उनकी खोई हुई शक्तियां वापस मिलीं।