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देव दीपावली: महत्व, पूजा विधि और शुभ संयोग

देव दीपावली, जिसे 'देवताओं की दीपावली' कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह वाराणसी में धूमधाम से मनाया जाता है, जहां देवी-देवता गंगा में स्नान करते हैं और दीप जलाते हैं। इस वर्ष, 5 नवंबर 2025 को मनाए जाने वाले इस पर्व पर कई शुभ योग बन रहे हैं। जानें इस दिन की पूजा विधि, आवश्यक सामग्री और इसके पीछे की धार्मिक मान्यता।
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देव दीपावली: महत्व, पूजा विधि और शुभ संयोग

देव दीपावली का महत्व

नई दिल्ली - देव दीपावली का पर्व हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे 'देवताओं की दीपावली' के नाम से भी जाना जाता है। यह उत्सव विशेष रूप से उत्तर प्रदेश के वाराणसी (काशी) में धूमधाम से मनाया जाता है। हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा को देव दीपावली का आयोजन होता है।


धार्मिक मान्यता

इस दिन मान्यता है कि सभी देवी-देवता काशी में आते हैं। वे स्वर्ग से धरती पर उतरकर गंगा में स्नान करते हैं और दीप जलाते हैं। इस वर्ष देव दीपावली 5 नवंबर 2025, बुधवार को मनाई जाएगी। वाराणसी में यह पर्व दिवाली के 15 दिन बाद आता है। शाम को गंगा के घाटों पर लाखों दीप जलाए जाते हैं, जिससे पूरा शहर सुनहरी रोशनी में नहाता है।


शुभ योग

इस वर्ष देव दीपावली पर कई शुभ योग बन रहे हैं, जैसे सिद्धि योग, शिववास योग और अश्विनी-भरणी नक्षत्र का महासंयोग। ये सभी योग इस दिन को विशेष रूप से मंगलमय बना रहे हैं।


पूजा सामग्री

पूजा के लिए आवश्यक सामग्री में शामिल हैं: स्वच्छ कपड़े, गंगाजल, दीपक (घी या तेल वाला), फूल, धूप, अगरबत्ती, भगवान शिव, विष्णु और लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र, बेलपत्र, तुलसी, दूर्वा घास, फल और मिठाई, और पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल)।


पूजा विधि

सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। यदि संभव हो तो पवित्र नदी में स्नान करना शुभ है। स्नान के बाद घर या मंदिर की जगह को साफ करें और गंगाजल छिड़कें। एक चौकी पर स्वच्छ कपड़ा बिछाकर भगवान शिव, विष्णु और लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें।


प्रदोष काल (शाम) में दीपक जलाएं और देवताओं को दीपदान करें। भगवान शिव का अभिषेक करें और भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी की पूजा करें। शाम को घर के अंदर-बाहर दीपक जलाएं। इस दिन 'दीपदान' का विशेष महत्व है।


देव दीपावली का उद्देश्य

देव दीपावली भगवान शिव की त्रिपुरासुर पर विजय की याद में मनाई जाती है। इस दिन भगवान शिव ने ब्रह्मांड की रक्षा की थी, और इसी खुशी में सभी देवता काशी में प्रकट हुए थे। वाराणसी के घाटों पर दीप जलने से माना जाता है कि देवता स्वयं वहां उपस्थित होते हैं।


गंगा स्नान का विशेष महत्व है, जो पापों से मुक्ति और शुभ फल देता है। इस दिन मिट्टी के दीये जलाकर गंगा में प्रवाहित किए जाते हैं, और इस दिन की पूजा से कई गुना फल मिलता है।