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धनु संक्रांति: तिथि, पूजा विधि और महत्व

धनु संक्रांति हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण तिथि है, जो साल में 12 बार आती है। इस दिन सूर्य देव अपनी राशि बदलते हैं, और इसका धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व है। जानें 16 दिसंबर 2025 को होने वाली धनु संक्रांति की तिथि, पूजा विधि और इसके महत्व के बारे में। इस अवसर पर गंगा स्नान और सूर्य देव की पूजा का विशेष महत्व है।
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धनु संक्रांति: तिथि, पूजा विधि और महत्व

धनु संक्रांति का महत्व

हिंदू धर्म में संक्रांति तिथि का विशेष महत्व होता है। यह तिथि साल में 12 बार आती है, और हर संक्रांति का अपना अलग महत्व होता है। संक्रांति वह दिन है जब सूर्य देव अपनी राशि बदलते हैं। साल की अंतिम संक्रांति धनु संक्रांति होती है, जब सूर्य देव वृश्चिक राशि से निकलकर धनु राशि में प्रवेश करते हैं। धनु राशि में एक महीने रहने के बाद, सूर्य देव मकर राशि में गोचर करेंगे। इस अवसर पर गंगा स्नान और सूर्य देव की पूजा का विशेष महत्व है। आइए जानते हैं धनु संक्रांति की तिथि, मुहूर्त, पूजा विधि और इसके महत्व के बारे में...


तिथि और मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, धनु संक्रांति 16 दिसंबर 2025 को मनाई जाएगी। इस दिन सूर्य देव 13 जनवरी 2026 तक धनु राशि में रहेंगे। 16 दिसंबर की सुबह 04:26 मिनट पर सूर्य देव धनु राशि में प्रवेश करेंगे।


इस दिन पुण्य काल सुबह 07:09 मिनट से लेकर दोपहर 12:23 मिनट तक रहेगा। महापुण्य काल सुबह 07:09 मिनट से 08:53 मिनट तक होगा। गंगा स्नान का शुभ समय 04:27 मिनट पर रहेगा।


पूजा विधि

धनु संक्रांति के दिन, सुबह स्नान करने के बाद साफ कपड़े पहनें और सूर्य देव को जल अर्पित करें। इस दौरान सूर्य मंत्र का जाप करें। तांबे के लोटे में जल भरकर सूर्य देव को अर्पित करना चाहिए, और जल में फूल और रोली डालना न भूलें। इस दिन सूर्य देव को लाल फूल अर्पित करें।


धनु संक्रांति का महत्व

धनु संक्रांति का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत अधिक है। इस दिन सूर्य देव की राशि परिवर्तन के साथ मौसम में भी बदलाव आता है, जिससे सर्दी बढ़ जाती है। यह पितरों के श्राद्ध और तर्पण के लिए भी एक महत्वपूर्ण तिथि मानी जाती है। इस दिन तर्पण करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है और पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है। सूर्य देव की उपासना करने से जातक की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।