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पौष अमावस्या 2025: जानें इस दिन के महत्व और व्रत कथा

पौष अमावस्या 2025 एक महत्वपूर्ण तिथि है, जो हिंदू धर्म में विशेष पुण्यदायी मानी जाती है। इस दिन स्नान, दान और व्रत का महत्व है। जानें इस दिन के धार्मिक अनुष्ठान, दान की वस्तुएं और पौराणिक कथा, जो इस दिन की विशेषता को दर्शाती है। इस लेख में हम पौष अमावस्या के महत्व और व्रत कथा के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।
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पौष अमावस्या 2025: जानें इस दिन के महत्व और व्रत कथा

पौष अमावस्या का महत्व


पौष अमावस्या 2025: हिंदू धर्म में पौष अमावस्या को एक विशेष पुण्यदायी तिथि माना जाता है। पौष माह सूर्य देव को समर्पित होता है, और इस महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को पौष अमावस्या कहा जाता है। वर्ष 2025 में इस दिन का विशेष महत्व है। इस दिन स्नान, दान, तर्पण और व्रत करने से न केवल पितरों की कृपा प्राप्त होती है, बल्कि घर में सुख और समृद्धि का वास होता है।


दान करने की वस्तुएं

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पौष अमावस्या के दिन पवित्र नदी में स्नान कर जरूरतमंदों को दान देना अत्यंत फलदायी होता है। विशेष रूप से अन्न, वस्त्र, तिल, गुड़ और कंबल का दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन पितरों के लिए तर्पण और पिंडदान करने की परंपरा भी है, जिससे पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और परिवार पर उनका आशीर्वाद बना रहता है।


पौष अमावस्या व्रत का महत्व

पौष अमावस्या पर व्रत रखने का भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन विधिपूर्वक व्रत करता है, उसके जीवन से दरिद्रता और कष्ट दूर होते हैं। हालांकि, शास्त्रों में कहा गया है कि कोई भी व्रत बिना कथा के अधूरा होता है। इसलिए पूजा के समय पौष अमावस्या व्रत कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए।


पौष अमावस्या व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार: एक गरीब ब्राह्मण था जिसकी पुत्री सुंदर और गुणवान थी, लेकिन उसे विवाह के लिए उपयुक्त वर नहीं मिल रहा था। एक दिन एक साधु ब्राह्मण उसके घर आए। ब्राह्मण ने श्रद्धा से साधु की सेवा की। साधु ने उसकी पुत्री के विवाह में आ रही बाधा को दूर करने का उपाय बताया। साधु ने कहा कि पास के एक घर में जाकर कन्या रोज सुबह सेवा और साफ-सफाई करे।


कन्या ने प्रतिदिन उस घर में जाकर साफ-सफाई की। कुछ दिनों बाद उस घर की महिला ने उसे देखा और सारी बात जानकर प्रसन्न होकर विवाह का आशीर्वाद दिया। लेकिन उसी समय उस महिला के पति की मृत्यु हो गई। दुखी महिला ने पीपल के पेड़ की 108 परिक्रमा कर भगवान विष्णु से प्रार्थना की। संयोग से वह दिन पौष अमावस्या का था। भगवान की कृपा से उसका पति पुनः जीवित हो गया और ब्राह्मण की पुत्री का विवाह भी संपन्न हुआ।


तभी से यह मान्यता है कि पौष अमावस्या के दिन व्रत कथा का पाठ और पीपल के वृक्ष की परिक्रमा करने से जीवन में खुशहाली आती है और सभी कष्ट दूर होते हैं।