भगवान शंकर की दृष्टि: नारद मुनि का अहंकार और दिव्य लीला
इस लेख में भगवान शंकर की करुणा और नारद मुनि के अहंकार की कहानी का वर्णन किया गया है। जानें कैसे भगवान ने नारद मुनि को सही मार्ग पर लाने के लिए एक दिव्य योजना बनाई। यह कथा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमें अहंकार के विनाश और विनम्रता के महत्व का भी पाठ पढ़ाती है।
| Nov 20, 2025, 17:26 IST
भगवान शंकर की करुणा
भगवान शंकर ने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा कि नारद मुनि के मन में अहंकार का विष फैल चुका है। यह विष उनके मन-मंदिर में तीव्रता से बढ़ रहा था। भोलेनाथ के हृदय में करुणा उमड़ पड़ी—यदि मुनि इसी विकृत कथा के साथ श्रीहरि के समक्ष उपस्थित होंगे, तो उनके कल्याण का मार्ग स्वयं वे ही रोक देंगे।
शंकर का संकल्प
शंकर ने ठान लिया—चाहे मुझे कितनी भी विनय करनी पड़े, मैं इन्हें इस मार्ग पर नहीं जाने दूंगा।
नारद मुनि की सोच
भगवान शंकर ने विनम्रता से कहा—
"हे मुनि! बार-बार मैं विनय करता हूँ,
जैसी कथा तुमने मुझे सुनाई,
वैसी बात प्रभु हरि के समक्ष कभी मत कहना।"
यदि कभी प्रसंग उठे, तो
सौम्यता से विषय बदल देना।"
हालांकि यह स्पष्ट चेतावनी थी, मुनि के मन में विचारों की आँधी चल रही थी। उन्हें लगा कि महादेव को उनके पराक्रम से जलन हो रही है।
श्रीहरि के समक्ष
इन्हीं उलझनों के साथ मुनि श्रीहरि के धाम पहुँचे। वहाँ भगवान विष्णु ने उन्हें देखकर प्रसन्नता से अपना आसन छोड़ दिया।
"बहुत दिनों बाद मुनिवर, आपकी कृपा प्राप्त हुई।"
श्रीहरि के स्नेह ने नारद मुनि का हृदय हिला दिया। उन्हें लगा कि भगवान उनकी कथा सुनना चाहते हैं।
अहंकार का वृक्ष
परंतु यह दुर्भाग्यपूर्ण क्षण था जब मुनि ने भगवान शंकर की चेतावनी को भुलाकर काम-चरित सुनाना शुरू कर दिया।
जबकि शंकर ने कहा था—
"काम-चरित की चर्चा से बचना।"
श्रीहरि ने मधुर वाणी में कहा—
"हे मुनिराज! आपका स्मरण करते ही मोह, काम, और अहंकार सब मिट जाते हैं।"
भगवान की योजना
भगवान ने मन में सोचा—"इनके हृदय में गर्व का अंकुर फूट आया है। यदि इसे न उखाड़ा गया, तो यह विपत्ति का कारण बनेगा।"
श्रीहरि ने तय किया कि अब समय आ गया है नारदजी को अहंकार से उबारने का।
इस प्रकार, मंच तैयार था—अहंकार के विनाश और कल्याण की उस दिव्य लीला के लिए जिसे दुनिया नारद-मोह प्रसंग के नाम से जानती है।
क्रमशः…
- सुखी भारती
