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भारतेंदु हरिश्चंद्र की जयंती: हिंदी साहित्य के महानायक

भारतेंदु हरिश्चंद्र की जयंती पर, हम उनके जीवन और साहित्यिक योगदान पर एक नजर डालते हैं। 1850 में जन्मे हरिश्चंद्र ने न केवल नाटक और कविताएं लिखीं, बल्कि नारी शिक्षा के समर्थन में भी महत्वपूर्ण कार्य किए। उनकी रचनाएं आज भी हिंदी साहित्य में अमर हैं। जानें उनके जीवन की कुछ खास बातें और उनकी प्रसिद्ध रचनाओं के बारे में।
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भारतेंदु हरिश्चंद्र की जयंती: हिंदी साहित्य के महानायक

भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन

भारतेंदु हरिश्चंद्र की जयंती: भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म 9 सितंबर 1850 को बनारस में हुआ। उनके पिता, गोपाल चंद्र, जिन्हें 'गुरु हरदास' के नाम से जाना जाता था, शायरी करते थे। बचपन में ही उनके माता-पिता का निधन हो गया। केवल 15 वर्ष की आयु में, उन्होंने पुरी के जगन्नाथ मंदिर की यात्रा की, जहां बंगाल की संस्कृति ने उन पर गहरा प्रभाव डाला। इसी समय उन्हें नाटक और उपन्यास लेखन की प्रेरणा मिली।


साहित्य में योगदान

भारतेंदु ने गद्य और पद्य दोनों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी उनका योगदान उल्लेखनीय है। उन्होंने 'कवि वाचन सुधा', 'हरीशचंद्र मैगजीन', 'हरीशचंद्र पत्रिका' और 'बाल बोधिनी' जैसी पत्रिकाओं का संपादन किया। नाटककार के रूप में उनकी पहचान स्थायी रही, और उनके प्रसिद्ध नाटकों में 'भारत दुर्दशा', 'सत्य हरिश', 'नील देवी' और 'अंधेर नगरी' शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, उन्होंने प्रेम कविताएं लिखीं और कई महत्वपूर्ण कृतियों का अनुवाद भी किया।


महिला शिक्षा का समर्थन

भारतेंदु हरिश्चंद्र सामाजिक सुधार आंदोलनों से भी जुड़े रहे। उन्होंने नारी शिक्षा के समर्थन में 'बाल बोधिनी' पत्रिका का प्रकाशन किया और अपनी रचनाओं में महिला सशक्तिकरण पर जोर दिया। वे आधुनिक शिक्षा और तकनीक के प्रति उत्साही थे और अंग्रेजी शासन के कुछ पहलुओं को सकारात्मक दृष्टि से देखते थे। सर सैयद अहमद खान के साथ उनके गहरे संबंध थे, लेकिन उर्दू बनाम हिंदी के मुद्दे पर वे असहमत रहे। 6 जनवरी 1885 को, केवल 34 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया, लेकिन हिंदी साहित्य में उनका योगदान उन्हें अमर बनाए रखेगा।


भारतेंदु की रचनाएँ

नैन भरि देखौ गोकुल-चंद

श्याम बरन तन खौर बिराजत अति सुंदर नंद-नंद

विथुरी अलकैं मुख पै झलकैं मनु दोऊ मन के फंद

मुकुट लटक निरखत रबि लाजत छबि लखि होत अनंद

संग सोहत बृषभानु-नंदिनी प्रमुदित आनंद-कंद

’हरीचंद’ मन लुब्ध मधुप तहं पीवत रस मकरंद


होली पर रचना

कैसी होरी खिलाई

आग तन-मन में लगाई

पानी की बूंदी से पिंड प्रकट कियो सुंदर रूप बनाई

पेट अधम के कारन मोहन घर-घर नाच नचाई

तबौ नहिं हबस बुझाई

भूंजी भांग नहीं घर भीतर, का पहिनी का खाई

टिकस पिया मोरी लाज का रखल्यो, ऐसे बनो न कसाई

तुम्हें कैसर दोहाई

कर जोरत हौं बिनती करत हूं छांड़ो टिकस कन्हाई

आन लगी ऐसे फाग के ऊपर भूखन जान गंवाई

तुन्हें कछु लाज न आई


उर्दू पर व्यंग्य

है है उर्दू हाय हाय

है है उर्दू हाय हाय कहां सिधारी हाय हाय

मेरी प्यारी हाय हाय मुंशी मुल्ला हाय हाय

बल्ला बिल्ला हाय हाय रोये पीटें हाय हाय

टांग घसीटैं हाय हाय सब छिन सोचैं हाय हाय

डाढ़ी नोचैं हाय हाय दुनिया उल्टी हाय हाय

रोजी बिल्टी हाय हाय सब मुखतारी हाय हाय

किसने मारी हाय हाय खबर नवीसी हाय हाय

दांत पीसी हाय हाय एडिटर पोसी हाय हाय

बात फरोशी हाय हाय वह लस्सानी हाय हाय

चरब-जुबानी हाय हाय शोख बयानि हाय हाय

फिर नहीं आनी हाय हाय


जागरण की रचना

जागे मंगल-रूप सकल ब्रज-जन-रखवारे

जागो नन्दानन्द -करन जसुदा के बारे

जागे बलदेवानुज रोहिनि मात-दुलारे

जागो श्री राधा के प्रानन तें प्यारे

जागो कीरति-लोचन-सुखद भानु-मान-वर्द्धित-करन

जागो गोपी-गो-गोप-प्रिय भक्त-सुखद असरन-सरन