Newzfatafatlogo

मध्य प्रदेश का देवपथ महादेव मंदिर: अनोखी परंपराएं और चमत्कारी शिवलिंग

मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले में स्थित देवपथ महादेव मंदिर एक अद्भुत स्थल है, जहां भगवान शिव का अभिषेक गंगाजल से नहीं, बल्कि गन्ने के रस से किया जाता है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां का शिवलिंग हर साल बढ़ता है, जिसे भक्त चमत्कार मानते हैं। सावन के पावन महीने में यहां विशेष पूजा-अर्चना होती है। जानें इस मंदिर की अनोखी परंपराओं और धार्मिक महत्व के बारे में।
 | 
मध्य प्रदेश का देवपथ महादेव मंदिर: अनोखी परंपराएं और चमत्कारी शिवलिंग

भगवान शिव का प्रिय महीना सावन

सावन का महीना, जो भगवान शिव को समर्पित है, इस वर्ष 11 जुलाई से शुरू होगा। इस पवित्र माह में शिव की पूजा और भक्ति का विशेष महत्व है। इस दौरान चार सोमवार आते हैं और कांवड़ यात्रा भी इसी दिन से आरंभ होगी। आइए जानते हैं एक अद्भुत शिव मंदिर के बारे में, जहां दूध और गंगाजल के बजाय गन्ने के रस से महादेव का अभिषेक किया जाता है। यह प्राचीन मंदिर मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले में स्थित है।


भगवान विष्णु की पूजा का स्थल

बड़वानी जिले के बोधवाड़ा गांव में स्थित देवपथ महादेव मंदिर को श्री महायंत्र के रूप में बनाया गया है। यहां शिवलिंग के ऊपर गुंबद के आकार का रुद्र यंत्र स्थापित है। कहा जाता है कि यह मंदिर देवताओं द्वारा निर्मित किया गया था। मान्यता है कि जब देवताओं ने मां नर्मदा की परिक्रमा शुरू की, तब उन्होंने इस मंदिर का निर्माण किया। इसी कारण इसे 'देवपथ महादेव' कहा जाता है। भगवान विष्णु ने भी यहां भगवान शिव की पूजा की थी।


हर साल बढ़ता है शिवलिंग

देवपथ महादेव मंदिर में स्थित शिवलिंग की विशेषता यह है कि यह अष्टकोणीय और 12 फीट ऊंचा है, जिसमें से 10 फीट हिस्सा भूमिगत है। यह शिवलिंग हर साल 'तिल-तिल' बढ़ता है, जिसे भक्त चमत्कार मानते हैं।


गन्ने के रस से अभिषेक

इस मंदिर की एक अनोखी परंपरा है कि यहां शिवलिंग का अभिषेक गंगाजल से नहीं, बल्कि गन्ने के रस से किया जाता है। विशेष अवसरों पर, जैसे महाशिवरात्रि और सावन के सोमवार, भक्तगण श्रद्धा से गन्ने के रस से अभिषेक करते हैं, जिससे उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।


विशाल रोट का प्रसाद

महाशिवरात्रि पर एक और रोचक परंपरा निभाई जाती है। आटे को सूत में लपेटकर, उसे कपड़े से ढंककर कंडे की आग में 'रोट' बनाया जाता है। यह विशाल रोटी अगली सुबह श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में वितरित की जाती है। यह परंपरा इस मंदिर की विशेष पहचान बन चुकी है।