मांगलिक दोष: जानें इसके प्रभाव और समाधान
मांगलिक दोष एक महत्वपूर्ण ज्योतिषीय विषय है, जो वैवाहिक जीवन पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। यह दोष तब उत्पन्न होता है जब मंगल ग्रह कुछ विशेष भावों में होता है। इस लेख में, हम मांगलिक दोष के प्रभाव, इसके कारण विवाह में देरी और अन्य जीवन क्षेत्रों पर इसके असर के बारे में चर्चा करेंगे। जानें कि कैसे इस दोष को संतुलित किया जा सकता है और सफल वैवाहिक जीवन के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं।
Sep 26, 2025, 14:28 IST
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मांगलिक दोष का परिचय
मांगलिक दोष एक महत्वपूर्ण विषय है जो वैदिक ज्योतिष में चर्चा का केंद्र बनता है। यह दोष तब उत्पन्न होता है जब मंगल ग्रह कुछ विशेष भावों में स्थित होता है। इसे अक्सर वैवाहिक जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डालने वाला माना जाता है, जिससे विवाह में देरी, मतभेद और असंतुलन की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। इस लेख में, हम मांगलिक दोष के बारे में विस्तार से जानेंगे और यह भी समझेंगे कि इसका विवाह योग पर क्या असर होता है।
मांगलिक दोष की पहचान
जब कुंडली में मंगल ग्रह विशेष भावों में होता है, तो मांगलिक दोष उत्पन्न होता है। खासकर जब मंगल लग्न, चंद्रमा या शुक्र से पहले, दूसरे, चौथे, सातवें, आठवें या बारहवें भाव में होता है, तब यह दोष बनता है।
विवाह योग पर प्रभाव
मांगलिक दोष वाले जातकों के लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि क्या यह दोष उनके वैवाहिक जीवन को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा। पारंपरिक मान्यता के अनुसार, मांगलिक दोष विवाह में देरी या उपयुक्त जीवनसाथी की खोज में कठिनाई पैदा कर सकता है।
हालांकि, इस दोष को संतुलित दृष्टिकोण से देखना आवश्यक है। कुछ लोग इसे गंभीर मानते हैं, जबकि अन्य वैदिक उपायों जैसे दान, अनुष्ठान या मांगलिक से विवाह करने से इसके प्रभाव को कम करने का प्रयास करते हैं।
अन्य जीवन क्षेत्रों पर प्रभाव
विवाह के अलावा, मांगलिक दोष स्वास्थ्य, करियर और वित्तीय स्थिरता जैसे अन्य क्षेत्रों को भी प्रभावित कर सकता है। मंगल से जुड़ी ऊर्जा जातक को अधिक आक्रामक या उग्र बना सकती है, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं में प्रकट हो सकता है।
हालांकि, हर व्यक्ति पर इसका प्रभाव अलग-अलग होता है। इसलिए, किसी अनुभवी ज्योतिषी द्वारा बनाई गई व्यक्तिगत रिपोर्ट से इसे बेहतर समझा जा सकता है।
विवाह में देरी की चिंता
मांगलिक दोष वाले जातकों में विवाह में देरी की चिंता सामान्य है। ज्योतिष में यह देरी कुंडली में मंगल की ऊर्जा के संतुलित होने में लगने वाले समय से संबंधित होती है। कुंडली में ग्रहों की दशा का अध्ययन किया जाता है ताकि यह पता चल सके कि विवाह के लिए सबसे अनुकूल समय कब आएगा।
ज्योतिषी मंगल की स्थिति के साथ-साथ शुक्र, बृहस्पति और सप्तम भाव के स्वामी की स्थिति का भी विश्लेषण करते हैं, जिससे विवाह योग का व्यापक दृष्टिकोण प्राप्त होता है। इन ग्रहों के प्रभाव को समझकर आप सही जीवनसाथी और सफल वैवाहिक जीवन के लिए बेहतर योजना बना सकते हैं।