मूलांक 6 के लिए हीरा रत्न: जानें इसके लाभ और धारण करने की विधि
मूलांक और रत्न का महत्व
अंक शास्त्र के अनुसार, हर व्यक्ति का एक मूलांक होता है, जो उनकी जन्मतिथि के अंकों को जोड़कर निकाला जाता है। प्रत्येक मूलांक किसी न किसी ग्रह से जुड़ा होता है, और हर ग्रह का अपना विशेष रत्न होता है। इन रत्नों को धारण करने से ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सकता है, जिससे जातक के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। रत्न पहनने से व्यक्ति के धन, स्वास्थ्य और समृद्धि में वृद्धि हो सकती है।
रत्न धारण करने की विधि
रत्न को हमेशा शुभ मुहूर्त में पहनना चाहिए। इसे पहनने से पहले गंगाजल से शुद्ध करना आवश्यक है। इसके बाद संबंधित ग्रह के मंत्र का जाप करके रत्न को धारण करना चाहिए। इस लेख में हम मूलांक 6 वाले जातकों के लिए उपयुक्त रत्न की जानकारी साझा कर रहे हैं।
हीरा रत्न का महत्व
मूलांक 6 के लिए हीरा रत्न अत्यंत शुभ माना जाता है, जो शुक्र ग्रह का रत्न है। इस ग्रह का प्रभाव मूलांक 6 वाले लोगों पर होता है, और हीरा धारण करने से उन्हें कई लाभ मिलते हैं। हीरा पहनने से व्यक्ति का आकर्षण बढ़ता है और उनका व्यक्तित्व प्रभावशाली बनता है। यह वैवाहिक जीवन में मधुरता लाता है और पति-पत्नी के बीच संबंधों को मजबूत करता है।
हीरा धारण करने के लाभ
हीरा पहनने से जातक के जीवन में भौतिक सुख और समृद्धि में वृद्धि होती है। इससे धन, वैभव और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। हीरा धारण करने से मान-सम्मान में वृद्धि होती है और समाज में प्रतिष्ठा बढ़ती है। यह स्वास्थ्य में सुधार लाने में भी सहायक होता है, क्योंकि यह शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है और रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाता है।
हीरा पहनने की विधि
हीरा रत्न को शुक्रवार के दिन शुभ मुहूर्त में पहनना चाहिए। इसे चांदी या प्लेटिनम की अंगूठी में जड़वाकर दाहिने हाथ की तर्जनी उंगली में पहनना चाहिए। इसे पहनने से पहले गंगाजल से शुद्ध करना न भूलें। फिर शुक्र मंत्र का जाप करते हुए इसे पहनें।
मंत्रों का जाप
हीरा पहनते समय शुक्र मंत्र का जाप करना शुभ माना जाता है। शुक्र ग्रह सौंदर्य, प्रेम और समृद्धि का प्रतीक है। इस रत्न को धारण करने से शुक्र ग्रह की ऊर्जा बढ़ाई जा सकती है, जिससे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आ सकते हैं।
ऊं द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः॥
ऊं भृगुसुताय विद्महे, शुक्राय धीमहि, तन्नो शुक्रः प्रचोदयात्॥
ऊं शुं शुक्राय नमः॥
