Newzfatafatlogo

मेवाड़ की धनतेरस परंपरा: आस्था और समृद्धि का उत्सव

धनतेरस के अवसर पर मेवाड़ की अनोखी परंपरा का पालन किया जाता है, जिसमें महिलाएं पीली मिट्टी लाकर उसे धन के रूप में मानती हैं। यह परंपरा सदियों पुरानी है और इसे श्रद्धा के साथ अगली पीढ़ी को सौंपा जाता है। स्थानीय मान्यता के अनुसार, यह मिट्टी अमृत की बूंदों से पवित्र मानी जाती है, जो समुद्र मंथन के दौरान धरती पर गिरी थीं। जानें इस परंपरा के पीछे की कहानी और इसके लाभों के बारे में।
 | 
मेवाड़ की धनतेरस परंपरा: आस्था और समृद्धि का उत्सव

मेवाड़ की धनतेरस परंपरा


धनतेरस का महत्व: भारत में दीपोत्सव की शुरुआत धनतेरस से होती है, लेकिन राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में यह दिन केवल धन का प्रतीक नहीं है, बल्कि आस्था और पवित्रता का पर्व बन जाता है। राजसमंद जिले के कांकरोली और उसके आस-पास के क्षेत्रों में, धनतेरस की सुबह एक विशेष परंपरा का पालन किया जाता है, जिसमें विवाहित महिलाएं सूर्योदय से पहले नदी के किनारे से 'पीली मिट्टी' लाकर उसे धन के रूप में मानती हैं।


यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और हर पीढ़ी इसे श्रद्धा के साथ अगली पीढ़ी को सौंपती है। महिलाएं अंधेरे में ही ब्रह्म मुहूर्त में जलाशय के किनारे पहुंचती हैं, वहां पूजा करके पीली मिट्टी को कलश या तगारी में भरकर घर लाती हैं। यह मिट्टी सोने-चांदी के समान पवित्र मानी जाती है और इसे घर में रखने से सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य बना रहता है।


समुद्र मंथन की कथा

समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुए भगवान धन्वंतरि:


स्थानीय मान्यता के अनुसार, समुद्र मंथन के समय भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए थे, और उनके स्वर्ण कलश से अमृत की कुछ बूंदें धरती पर गिरी थीं। कहा जाता है कि ये अमृत की बूंदें इस मिट्टी में समाहित हो गईं और इसे पवित्र बना दिया। इसलिए मेवाड़ की महिलाएं इसे 'धन्वंतरि भगवान का आशीर्वाद' मानकर अपने घर लाती हैं।


धनतेरस पर लाभ

घर लाने के फायदे:


कांकरोली की एक श्रद्धालु ने बताया कि यह मिट्टी केवल धूल नहीं है, बल्कि 'अमृत की बूंदें' हैं। उनके अनुसार, 'इसे घर लाने से पूरे साल सुख-समृद्धि बनी रहती है और घर में रोग नहीं आते।' बुजुर्ग सुन्दर बाई का कहना है कि यह परंपरा हमारी पहचान है। इसे निभाने से हमारे घर की लक्ष्मी कभी रूठती नहीं। इस मिट्टी का उपयोग धनतेरस की शाम लक्ष्मी पूजन में भी किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी इससे आंगन और रसोई के चूल्हे को लीपा जाता है। यह न केवल शुद्धिकरण का प्रतीक है, बल्कि धन और स्वास्थ्य का भी प्रतीक माना जाता है।


दीपोत्सव की शुरुआत

धनतेरस से दीपोत्सव की शुरुआत:


उन्होंने बताया कि जब दीपोत्सव की शुरुआत इतनी पवित्र परंपरा से होती है, तो पूरा त्योहार शुभ और मंगलमय बन जाता है। मेवाड़ की यह परंपरा यह दर्शाती है कि भारतीय संस्कृति में धन का अर्थ केवल सोना या चांदी नहीं है, बल्कि मिट्टी, स्वास्थ्य, और प्रकृति से जुड़ा समृद्ध जीवन है। यही कारण है कि यहां की पीली मिट्टी हर धनतेरस पर आस्था का अमृत कलश बन जाती है।