राहु और केतु: ज्योतिष में छाया ग्रहों की महत्ता और प्रसन्नता के उपाय
ज्योतिष शास्त्र में राहु और केतु को छाया ग्रह माना जाता है, जो जीवन में कई समस्याएं उत्पन्न कर सकते हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे इन ग्रहों को प्रसन्न किया जा सकता है, साथ ही राहु की अंतर्दशा और महादशा के बारे में भी जानकारी मिलेगी। जानें भगवान शिव की पूजा और अन्य उपायों के बारे में, जो राहु और केतु की कृपा पाने में मदद कर सकते हैं।
Sep 18, 2025, 14:28 IST
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राहु और केतु का ज्योतिष में स्थान
ज्योतिष शास्त्र में राहु और केतु को छाया ग्रह माना जाता है। ये ग्रह एक राशि में डेढ़ साल तक रहते हैं। वर्तमान में केतु सिंह राशि में और राहु कुंभ राशि में स्थित हैं। राहु-केतु की दृष्टि से व्यक्ति को जीवन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि राहु की अंतर्दशा कितने समय तक चलती है? इस लेख में हम जानेंगे कि इन ग्रहों को कैसे प्रसन्न किया जा सकता है।
राहु को प्रसन्न करने के उपाय
भगवान शिव की पूजा से राहु और केतु प्रसन्न होते हैं। इसलिए सोमवार और शनिवार को स्नान के बाद काले तिल और गंगाजल से भोलेनाथ का अभिषेक करना चाहिए। इसके बाद जटा वाला नारियल बहते जल में प्रवाहित करें। काले कुत्ते को रोटी खिलाने से भी राहु और केतु की नकारात्मकता समाप्त होती है।
राहु की अंतर्दशा
ज्योतिषियों के अनुसार, राहु की अंतर्दशा 2 साल 8 महीने की होती है, जबकि इसकी महादशा 18 साल की होती है। राहु महादशा के दौरान सबसे पहले राहु की अंतर्दशा और प्रत्यंतर दशा आती है। इसके बाद अन्य ग्रहों की अंतर्दशा होती है। गुरु, सूर्य और चंद्र की अंतर्दशा में राहु शुभ फल नहीं देते हैं। राहु की कृपा से जातक को जीवन में सुख और उन्नति प्राप्त होती है।
शिव मंत्र
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालं ओम्कारम् अमलेश्वरम्॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
करचरणकृतं वाक् कायजं कर्मजं श्रावण वाणंजं वा मानसंवापराधं ।
विहितं विहितं वा सर्व मेतत् क्षमस्व जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो ॥