शिमला नगर निगम की डिजिटल पहल: आवारा कुत्तों की गिनती में जीपीएस तकनीक का उपयोग

डिजिटल डॉग सेंसस की शुरुआत
डिजिटल डॉग सेंसस: भारत में पहली बार, शिमला नगर निगम ने आवारा कुत्तों की गिनती के लिए एक डिजिटल पहल शुरू की है। इस अनोखी योजना के तहत कुत्तों को जीपीएस कॉलर और क्यूआर कोड के माध्यम से टैग किया जा रहा है। इसके साथ ही, नसबंदी और एंटी-रेबीज टीकाकरण का अभियान भी चलाया जा रहा है। यह प्रयास न केवल पालतू जानवरों की भलाई को बढ़ावा देगा, बल्कि शहर में बढ़ते डॉग-बाइट मामलों पर नियंत्रण भी लाएगा।
कॉलर से मिलेगी जानकारी
मेयर सुरेंद्र चौहान ने बताया कि कॉलर के माध्यम से प्रत्येक कुत्ते का स्थान, वैक्सीनेशन स्थिति और व्यवहार संबंधी जानकारी डिजिटल रूप से दर्ज की जाएगी। आक्रामक स्वभाव वाले कुत्तों को रेड टैग से चिह्नित किया जाएगा ताकि उन्हें सुरक्षित तरीके से संभाला जा सके। स्थानीय लोग और पशु कल्याण संगठन क्यूआर कोड स्कैन करके कुत्तों की जानकारी प्राप्त कर सकेंगे।
कितने कुत्तों की टैगिंग हुई
अब तक लगभग 2000 कुत्तों का टीकाकरण और टैगिंग की जा चुकी है। यह अभियान 29 अगस्त तक जारी रहेगा और इससे प्राप्त आंकड़े भारत के पहले डिजिटल डॉग सेंसस का हिस्सा बनेंगे। इसके माध्यम से आवारा कुत्तों की जनसंख्या पर बेहतर नियंत्रण और रेबीज के मामलों की सटीक निगरानी संभव होगी।
पारदर्शिता और सार्वजनिक स्वास्थ्य
इस बार आंकड़ों की एंट्री और वेरिफिकेशन की जिम्मेदारी कई स्वास्थ्य अधिकारियों को सौंपी गई है ताकि पारदर्शिता बनी रहे। पहले जहां ऐसे आंकड़े कम जांचे जाते थे, वहीं अब पूरी प्रक्रिया को सख्ती से मॉनिटर किया जा रहा है। नगर निगम जागरूकता अभियान भी चला रहा है, जिससे लोग आवारा कुत्तों को सुरक्षित तरीके से संभालने और निर्धारित स्थानों पर भोजन कराने के लिए प्रेरित हों।
चुनौतियां और संभावनाएं
शिमला में प्रतिदिन औसतन 2-3 डॉग बाइट मामले सामने आते हैं। कई वार्ड में यह संख्या चार तक पहुंच जाती है। ऐसे में यह डिजिटल टैगिंग पहल काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। हालांकि, स्थानीय लोगों ने कुत्तों की बढ़ती संख्या और बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंता व्यक्त की है। अधिकारियों का कहना है कि कानूनी और तकनीकी चुनौतियों के बावजूद, यह पहल एक महत्वपूर्ण कदम है और भविष्य में पूरे हिमाचल प्रदेश और अन्य शहरों के लिए एक मॉडल बन सकती है।