मुंबई का अनकहा इतिहास: कैसे दहेज में मिला था यह महानगर?
मुंबई का अनोखा इतिहास
मुंबई का अनकहा इतिहास: आज जिसे हम मायानगरी के नाम से जानते हैं, मुंबई का इतिहास बेहद रोचक और अनोखा है। यह शहर आज देश की आर्थिक राजधानी के रूप में स्थापित है, लेकिन इसका अतीत यह दर्शाता है कि यह कभी दहेज के रूप में अंग्रेजों के हाथ में आया था। हां, आपने सही सुना! लगभग 350 साल पहले, एक ऐतिहासिक विवाह के माध्यम से इस शहर का स्वामित्व अंग्रेजों को मिला। आइए, मुंबई के इस दिलचस्प इतिहास के बारे में जानते हैं।
मुंबई का नाम और पुर्तगालियों का कब्जा
मुंबई का पूर्व नाम "बॉम्बे" था, जिसे पुर्तगालियों ने रखा था। यह शहर सात छोटे द्वीपों से मिलकर बना था और लंबे समय तक पुर्तगालियों के अधीन रहा। 1534 में, गुजरात के बहादुर शाह से पुर्तगालियों ने इस द्वीप समूह को छीन लिया, और तब से यह उनके नियंत्रण में था। हालांकि, यह स्थिति ज्यादा समय तक नहीं रही।
ब्रिटिश राजपरिवार की शादी और दहेज में मिली मुंबई
1661 में, ब्रिटिश शासक चार्ल्स द्वितीय ने पुर्तगाल की राजकुमारी कैथरीन डी ब्रिगांजा से विवाह किया। इस शादी के उपहार के रूप में, पुर्तगालियों ने मुंबई (तब बॉम्बे) को अंग्रेजों को दहेज में दे दिया। चार्ल्स द्वितीय को यह शहर इस शाही विवाह के एक हिस्से के रूप में मिला। अब, यहां से एक और दिलचस्प मोड़ आता है।
ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दी मुंबई
1668 में, चार्ल्स द्वितीय ने मुंबई को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दिया। इसके बदले में, कंपनी ने ब्रिटिश सरकार को हर साल 10 पौंड का किराया दिया। लेकिन इसके बाद भी, ब्रिटिश शासक ने मुंबई के बदले एक और बड़ा सौदा किया। उन्होंने इस शहर को गिरवी रखकर 50,000 पौंड का लोन लिया, जिस पर 6 प्रतिशत ब्याज दर तय की गई। इससे स्पष्ट होता है कि मुंबई का प्रारंभिक इतिहास उतार-चढ़ाव से भरा हुआ था।
मुंबई का शहरीकरण और विकास
मुंबई का असली शहरीकरण ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के आगमन के बाद ही शुरू हुआ। 1661 में, मुंबई की जनसंख्या केवल 10,000 थी, लेकिन 1675 तक यह बढ़कर 60,000 हो गई। धीरे-धीरे यह शहर बढ़ता गया और आज मुंबई महानगरी में 2.5 करोड़ लोग निवास करते हैं। 1687 में, ईस्ट इंडिया कंपनी ने मुंबई को अपना मुख्यालय बना लिया और यहां से शहर का विकास तेजी से हुआ।
मुंबई की अहमियत और बंबई का नाम
मुंबई को लंबे समय तक बंबई के नाम से जाना जाता रहा। यह नाम पुर्तगालियों द्वारा दिया गया था और अंग्रेजों के समय में भी यही नाम प्रचलित रहा। भारत की आज़ादी के बाद भी, यह शहर बंबई के नाम से ही जाना जाता था। लेकिन 1995 में, इसका नाम आधिकारिक रूप से मुंबई रखा गया।
मुंबई और भारत की पहली रेलवे लाइन
मुंबई का विकास न केवल शहरीकरण से हुआ, बल्कि यहां की अवसंरचना में भी कई बड़े बदलाव आए। 1845 में हॉर्नबाय वेल्लार्ड नामक परियोजना के तहत मुंबई के सातों द्वीपों को जोड़ने का कार्य शुरू हुआ। इसके बाद 1853 में, मुंबई को ठाणे से जोड़ने के लिए भारत की पहली रेलवे लाइन बिछाई गई। इस प्रकार, मुंबई एक प्रमुख व्यापारिक और व्यावसायिक केंद्र बन गया।
मुंबई का विकास और महत्व
मुंबई का इतिहास हमें यह सिखाता है कि यह शहर किस प्रकार एक साधारण द्वीप समूह से एक विश्वव्यापी महानगर में परिवर्तित हुआ। दहेज के रूप में अंग्रेजों को मिला मुंबई आज भारतीय अर्थव्यवस्था का केंद्र बन चुका है। यह शहर न केवल अपने ऐतिहासिक महत्व के लिए, बल्कि अपने निरंतर विकास और प्रगति के लिए भी प्रसिद्ध है।