जेन गुडऑल: चिंपैंजियों की दुनिया की खोज में एक प्रेरणादायक यात्रा

जेन गुडऑल: एक वैज्ञानिक से मानवता की आवाज
जेन गुडऑल, एक ऐसा नाम जो वैज्ञानिक अनुसंधान से परे जाकर मानवता की आवाज बन गया है। ब्रिटेन के बौर्नमाउथ में जन्मी इस बच्ची ने मुर्गी के अंडे देने के रहस्य को जानने के लिए मुर्गीघर में छिपकर अपने सफर की शुरुआत की, और बाद में वह पर्यावरण संरक्षण की प्रतीक बन गई।
चिंपैंजियों के प्रति गहरा प्रेम
जेन गुडऑल का जन्म 3 अप्रैल 1934 को हुआ। उनके पिता ने उन्हें एक वर्ष की आयु में 'जुबली' नाम का चिंपैंजी डॉल दिया, जो उनके पहले दोस्त और प्रेरणा स्रोत बने। बचपन में, जेन घंटों जानवरों का अवलोकन करतीं और उनके व्यवहार को समझने का प्रयास करतीं। उन्होंने कहा, 'मेरी पहली वैज्ञानिक खोज तब हुई जब मैं मुर्गी के अंडे देने का रहस्य जानने के लिए मुर्गीघर में छिप गई थी।' इस जिज्ञासा ने उन्हें अफ्रीका की ओर अग्रसर किया, जहां उन्होंने चिंपैंजियों का अध्ययन किया।
डिग्री के बिना विज्ञान में नया अध्याय
जेन ने अपने सपनों को पूरा करने के लिए वेट्रेस का काम किया और पैसे इकट्ठा कर अफ्रीका पहुंचीं। वहां उनकी मुलाकात प्रसिद्ध पुरातत्वविद डॉ. लुई लीकी से हुई, जिन्होंने उन्हें नैरोबी के नेशनल म्यूज़ियम में सचिव के रूप में काम करने का अवसर दिया। लीकी ने उन्हें तंजानिया के गॉम्बे जंगल में चिंपैंजियों का अध्ययन करने भेजा। 1960 में, जेन ने बिना किसी औपचारिक डिग्री के फील्ड रिसर्च शुरू की, जहां उन्होंने यह खोज की कि चिंपैंजी भी उपकरण बनाते और उनका उपयोग करते हैं।
भावनाओं का विज्ञान और 'डेविड ग्रेबीयर्ड' से दोस्ती
शुरुआत में चिंपैंजियों ने जेन को स्वीकार नहीं किया, लेकिन महीनों की मेहनत के बाद 'डेविड ग्रेबीयर्ड' नामक चिंपैंजी उनके करीब आया। इस अनुभव ने जेन को यह समझने में मदद की कि चिंपैंजी न केवल बुद्धिमान हैं, बल्कि भावनात्मक भी हैं। उन्होंने हर चिंपैंजी को नाम दिया, जैसे गॉलिएथ और फिफी, और उन्हें संख्याओं में नहीं बांधा। कई वैज्ञानिकों ने इसे भावुकता कहा, लेकिन जेन ने यह साबित किया कि विज्ञान में करुणा भी हो सकती है।
वैज्ञानिक से कार्यकर्ता बनने की यात्रा
1986 में 'अंडरस्टैंडिंग चिंपैंजीज' सम्मेलन ने जेन के जीवन की दिशा बदल दी। जब उन्होंने देखा कि जंगलों में उनके प्रिय चिंपैंजी तेजी से विलुप्त हो रहे हैं, तो उन्होंने खुद को एक वैज्ञानिक से कार्यकर्ता में बदल लिया। उन्होंने Jane Goodall Institute की स्थापना की, जो आज भी पर्यावरण संरक्षण और पशु अधिकारों के लिए काम करता है। 2002 में, उन्हें संयुक्त राष्ट्र की Messenger of Peace की उपाधि दी गई। उनका संदेश आज भी गूंजता है- 'मेरा सपना है एक ऐसी दुनिया बनाना जहां मनुष्य और प्रकृति एक साथ सामंजस्य में रहें।'