अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में संरक्षणवाद का उदय: भारत की चुनौतियाँ और अवसर

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का बदलता परिदृश्य
आज के समय में, वैश्विक व्यापार का परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। संरक्षणवाद का पुनरुत्थान हो रहा है, और देश अपने 'राष्ट्रीय हितों', 'स्थिरता' और 'आर्थिक लचीलेपन' के नाम पर व्यापार नीतियों को फिर से परिभाषित कर रहे हैं। यह खंडित व्यापार का युग है, जिसमें भू-राजनीतिक तनाव और आर्थिक असुरक्षाएं देशों को संरक्षणवादी नीतियों की ओर ले जा रही हैं।वैश्विक दिग्गजों की संरक्षणवादी नीतियाँ: भारत के लिए चुनौतियाँ
संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपने 'राष्ट्रीय व्यापार घाटे' को 'राष्ट्रीय आपातकाल' घोषित किया है और विभिन्न देशों के खिलाफ जवाबी टैरिफ और प्रतिसंतुलनकारी उपाय लागू कर रहा है। यह दर्शाता है कि अमेरिका अपनी घरेलू अर्थव्यवस्था को प्राथमिकता दे रहा है।
चीन ने रणनीतिक सामग्री जैसे दुर्लभ मृदा तत्वों पर निर्यात लाइसेंसिंग नियंत्रण लागू किया है, जिससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएँ बाधित हो रही हैं। यह कदम चीन की औद्योगिक महत्वाकांक्षाओं को दर्शाता है।
यूरोपीय संघ 'कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म' को लागू करने की योजना बना रहा है, जिसके तहत कार्बन-गहन आयातों पर नया कर लगाया जाएगा। यह नीति भारतीय निर्यातकों के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करेगी।
भारत के लिए आगे की राह: निर्यातकों का सशक्तिकरण
इस बदलते वैश्विक परिदृश्य में, भारत को अपने निर्यातक समुदाय का समर्थन करने वाली नीतियों को मजबूत करना आवश्यक है। भारत ने सब्सिडी-आधारित निर्यात से दूर जाने की प्रतिबद्धता जताई है। अब समय है कि ऐसी नीतियाँ बनाई जाएं जो 'घरेलू मूल्य सृजन' और 'विनिर्माण' को प्रोत्साहित करें।
एक प्रभावी कदम निर्यातों को करों और शुल्कों से मुक्त करना है, जिससे भारतीय उत्पाद अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अधिक प्रतिस्पर्धी बन सकें। ऐसी नीतियाँ जो नवाचार, गुणवत्ता और लागत-प्रभावशीलता को बढ़ावा देंगी, भारत के निर्यातक समुदाय को मजबूत करेंगी।