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ईरान-इजरायल संघर्ष का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: क्या हैं संभावित परिणाम?

पश्चिम एशिया में ईरान-इजरायल संघर्ष के चलते कच्चे तेल की कीमतों में तेजी आई है, जिसका सीधा असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। भारत, जो अपनी तेल जरूरतों का अधिकांश हिस्सा आयात करता है, महंगाई, राजकोषीय घाटा और चालू खाता घाटे के बढ़ने जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे ये बढ़ती कीमतें आम उपभोक्ताओं और सरकार की वित्तीय स्थिति को प्रभावित कर सकती हैं।
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ईरान-इजरायल संघर्ष का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: क्या हैं संभावित परिणाम?

ईरान-इजरायल संघर्ष का असर

ईरान-इजरायल संघर्ष का असर: पश्चिम एशिया में बढ़ते तनाव और अमेरिका-इजरायल द्वारा ईरान के परमाणु स्थलों पर हमलों के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में तेजी आई है। सोमवार को ब्रेंट क्रूड की कीमत 2% बढ़कर 78.53 डॉलर प्रति बैरल हो गई, जो इस वर्ष जनवरी के बाद का उच्चतम स्तर है। इसके साथ ही, ईरानी संसद द्वारा स्ट्रेट ऑफ हॉर्मुज को बंद करने की अनुमति देने से वैश्विक आपूर्ति में बाधा आने का खतरा बढ़ गया है।


महंगाई में वृद्धि

महंगाई में वृद्धि: तेल की कीमतों में वृद्धि का सबसे पहला प्रभाव महंगाई पर पड़ता है। कच्चा तेल परिवहन और उत्पादन दोनों में उपयोग होता है, जिससे पेट्रोल, डीजल और एलपीजी जैसी आवश्यक वस्तुएं महंगी हो जाती हैं। इसके परिणामस्वरूप, परिवहन और उत्पादन की लागत में वृद्धि होती है, जो थोक मूल्य सूचकांक (WPI) और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) को प्रभावित करती है। वर्तमान में भारत की खुदरा महंगाई दर मई 2025 के आंकड़ों के अनुसार 2.82% है।


राजकोषीय घाटे में वृद्धि

राजकोषीय घाटे में वृद्धि: भारत सरकार आवश्यक उत्पादों जैसे एलपीजी और खाद पर सब्सिडी देती है ताकि आम जनता को अंतरराष्ट्रीय कीमतों के प्रभाव से बचाया जा सके। लेकिन जब तेल की कीमतें बढ़ती हैं, तो सरकार को या तो सब्सिडी बढ़ानी पड़ती है या टैक्स में कटौती करनी पड़ती है, जिससे राजस्व में कमी या खर्च में वृद्धि होती है। वर्तमान में भारत का राजकोषीय घाटा जीडीपी का 4.8% या ₹15.77 लाख करोड़ है, जो FY26 के संशोधित लक्ष्य का 100.5% है।


चालू खाता घाटे पर दबाव

चालू खाता घाटे पर दबाव: भारत का तेल आयात बिल बढ़ने से चालू खाता घाटा (CAD) भी बढ़ता है। यदि निर्यात में समान गति से वृद्धि नहीं होती है, तो देश का विदेशी मुद्रा भंडार घटता है और निवेशकों का विश्वास डगमगाने लगता है। वर्तमान में चालू खाता घाटा अक्टूबर-दिसंबर 2024 तिमाही में $11.5 अरब या जीडीपी का 1.1% है।


रुपये की गिरावट का प्रभाव

रुपये की गिरावट का प्रभाव: तेल आयात के लिए डॉलर की मांग बढ़ने से रुपये पर दबाव बनता है। डॉलर के मुकाबले रुपये का कमजोर होना न केवल तेल को महंगा बनाता है, बल्कि अन्य आयात भी महंगे कर देता है, जिससे भारत में इंपोर्टेड महंगाई बढ़ती है। सोमवार, 23 जून को रुपया 17 पैसे गिरकर 86.72 प्रति डॉलर के स्तर पर पहुंच गया।


घरेलू खर्च में कटौती

घरेलू खर्च में कटौती: जब एलपीजी और पेट्रोल-डीजल महंगे होते हैं, तो लोगों के मासिक बजट पर सीधा असर पड़ता है। ईंधन पर अधिक खर्च होने से लोग अन्य वस्तुओं और सेवाओं पर खर्च कम कर देते हैं, जिससे बाजार में मांग घटती है। इसका प्रभाव खुदरा, यात्रा और FMCG जैसे क्षेत्रों पर पड़ता है।


चुनौतियों का सामना

पश्चिम एशिया में बढ़ते युद्ध के बादल और कच्चे तेल की चढ़ती कीमतें भारत के लिए चुनौतीपूर्ण समय की ओर इशारा कर रही हैं। यदि तेल की दरें इसी तरह ऊंची बनी रहती हैं, तो यह न केवल सरकारी बैलेंस शीट को प्रभावित करेगा, बल्कि आम उपभोक्ताओं की जेब पर भी गहरा असर डालेगा।