क्या अमेरिका का नया टैरिफ बिल भारत और चीन की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा?

ट्रंप का नया टैरिफ बिल
ट्रंप टैरिफ बिल: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक नए सीनेट बिल को मंजूरी दी है, जिसमें रूस के साथ व्यापार करने वाले देशों पर 500 प्रतिशत तक का टैरिफ लगाने का प्रस्ताव है। रिपब्लिकन सीनेटर लिंडसे ग्राहम ने एक समाचार चैनल को बताया कि यदि कोई देश रूस से सामान खरीदता है और यूक्रेन का समर्थन नहीं करता, तो अमेरिका में उसके सामान पर 500 प्रतिशत तक का आयात शुल्क लगाया जा सकता है। उन्होंने कहा, "भारत और चीन पुतिन का 70 प्रतिशत तेल खरीदते हैं, जिससे उनकी युद्ध मशीन को समर्थन मिलता है।
बिल की जानकारी और ट्रंप की मंजूरी
सीनेटर ग्राहम ने बताया कि यह बिल डेमोक्रेट सीनेटर रिचर्ड ब्लूमेंथल के सहयोग से तैयार किया गया है और इसे अगस्त में पेश किया जाएगा। इस बिल को 84 सीनेटरों का समर्थन प्राप्त है, और ट्रंप ने हाल ही में एक गोल्फ खेल के दौरान इसे आगे बढ़ाने की अनुमति दी।
ट्रंप की मंजूरी और बिल की पृष्ठभूमि
ग्राहम के अनुसार, राष्ट्रपति ट्रंप ने उन्हें स्पष्ट रूप से कहा, "अब तुम्हें अपना बिल आगे बढ़ाना चाहिए।" इससे पहले वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि ट्रंप प्रशासन ने बिल की बाध्यकारी भाषा को अधिक लचीले विकल्प में बदलने का सुझाव दिया था, ताकि इसके कानूनी प्रवर्तन में कुछ नरमी लाई जा सके।
अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने कहा कि ट्रंप प्रशासन इस बात को लेकर सतर्क है कि इस तरह के प्रतिबंध व्यापक शांति प्रक्रिया को बाधित न करें, लेकिन रूस पर दबाव बनाने के लिए प्रतिबंधों के विकल्प को नकारा नहीं जा सकता।
भारत और चीन को होगा सबसे ज्यादा नुकसान
यह प्रस्तावित टैरिफ भारत और चीन को सबसे अधिक प्रभावित कर सकता है, क्योंकि ये दोनों देश मिलकर रूस से 70 प्रतिशत तेल खरीदते हैं। भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2024-25 में रिकॉर्ड $68.7 अरब तक पहुंच गया, जबकि महामारी से पहले यह केवल $10.1 अरब था।
इस तेजी से बढ़ते व्यापार में मुख्य भूमिका भारत की ओर से रूस से बड़े पैमाने पर तेल और अन्य आवश्यक वस्तुओं के आयात की रही है। दोनों देशों ने वर्ष 2030 तक आपसी व्यापार को $100 अरब तक ले जाने का लक्ष्य रखा है।
बढ़ती साझेदारी पर संकट के बादल
भारत और रूस के बढ़ते आर्थिक रिश्ते और ऊर्जा निर्भरता के चलते इस बिल का असर भारत की तेल आपूर्ति, मुद्रा विनिमय और रणनीतिक साझेदारी पर पड़ सकता है। यदि यह बिल पारित होता है और लागू किया जाता है, तो भारत को अमेरिका के साथ अपने व्यापारिक संबंधों में नई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
चीन के लिए भी यह बिल उसकी तेल आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित कर सकता है, जिससे वैश्विक बाजार में ऊर्जा कीमतों में उतार-चढ़ाव बढ़ सकता है।