चीन से सीमलेस पाइप और ट्यूब का आयात बढ़ा, भारतीय उद्योग को खतरा
चीन से आयात में वृद्धि
वित्त वर्ष 2024-25 में चीन से 'सीमलेस पाइप' और 'ट्यूब' का आयात सालाना आधार पर 4.97 लाख टन तक पहुंच गया, जो पिछले वर्ष की तुलना में दो गुना से अधिक है। यह जानकारी घरेलू निर्माताओं के संगठन ने साझा की।
उद्योग के आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 में भारत ने चीन से 2.44 लाख टन 'सीमलेस पाइप' और 'ट्यूब' का आयात किया था। इसके पहले, वित्त वर्ष 2022-23 में यह आंकड़ा 1.47 लाख टन और वित्त वर्ष 2021-22 में 82,528 टन था।
उद्योग की चिंताएं
सीमलेस ट्यूब मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष ने बताया कि पिछले वित्त वर्ष में चीन से पाइप का आयात वित्त वर्ष 2021-22 की तुलना में लगभग पांच गुना बढ़ गया है।
उन्होंने कहा, "हालांकि भारत सरकार ने घरेलू 'सीमलेस पाइप' उद्योग की सुरक्षा के लिए कई उपाय किए हैं, फिर भी चीन से आयात में तेजी से वृद्धि हो रही है।"
उद्योग संगठन ने यह भी बताया कि चीनी कंपनियां भारतीय बाजार में 'सीमलेस पाइप' की डंपिंग कर रही हैं और भारतीय सीमा शुल्क पर अधिक 'बिलिंग' के जरिए करों की चोरी कर रही हैं।
बाजार में असमानता
सिंघल ने कहा, "चीनी आयातक सीमा शुल्क निकासी के समय बढ़ा-चढ़ाकर 'बिल' मूल्य घोषित कर रहे हैं, जबकि बाद में उन उत्पादों को भारतीय बाजार में घरेलू निर्माताओं की तुलना में काफी कम दामों पर बेचते हैं। यह प्रथा निष्पक्ष व्यापार को कमजोर करती है और भारतीय उत्पादकों को नुकसान पहुंचाती है।"
चीन न केवल सस्ते पाइपों के जरिए भारतीय अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि ताप विद्युत, परमाणु ऊर्जा और तेल एवं गैस जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में घटिया सामग्री की आपूर्ति करके सुरक्षा चिंताएं भी उत्पन्न कर रहा है।
आर्थिक और सुरक्षा चिंताएं
उन्होंने कहा, "ये गतिविधियां भारत के भविष्य के ऊर्जा और बुनियादी ढांचे में घुसपैठ करने का प्रयास कर रही हैं, जो दीर्घकालिक जोखिम पैदा कर सकती हैं।"
सिंघल ने बताया कि 'सीमलेस पाइप' का न्यूनतम आयात मूल्य 85,000 रुपये प्रति टन है, जबकि भारतीय बाजार में चीन के पाइप का मूल्य 70,000 रुपये प्रति टन है। इससे स्वदेशी क्षमता का कम उपयोग हो रहा है और रोजगार के अवसर भी घट रहे हैं।
